7 दिसंबर 2009

शहीदों की प्रतिमाओं पर बैठेंगे रोज़ ही कौए ..





          आज सुबह  सुप्रसिद्ध गान्धीवादी विचारक एवं लेखक श्री कनक तिवारी का फोन आया “शरद ,आज 7 दिसम्बर को प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुखदेव राज का जन्म दिन है  यहाँ से बारह किलोमीटर अंडा गाँव के पास उनकी प्रतिमा है ,चलो उन्हे माला पहना के आते हैं ।“ हम लोगों ने कवि श्री दानेश्वर शर्मा,श्री मुकुन्द कौशल और समाजसेवी हरभजन सिंह लाल को साथ लिया और अंडा पहुँच गये ।मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि यह बात मुझे पहले से क्यों नहीं पता थी ..हो सकता है मैने सोचा ..लेकिन इतने बड़े क्रांतिवीर जिनके बारे में हम किताबों में पढ़ चुके हैं उनकी प्रतिमा यहाँ पर है .और शासन को यह पता ही नहीं है .. नहीं ऐसा नहीं हो सकता .. ज़रूर पता होगा , हो सकता है मुझे ही न मालूम हो , मगर न कहीं अखबारों में पढ़ा न किसी ने बताया ..।
 






          रास्ते में कनक तिवारी जी ने जानकारी दी कि सुखदेव राज की मृत्यु 5 जुलाई 1973 को दुर्ग में ही हुई थी और वे निधन से पहले 3-4 वर्षों से यहीं थे । उन्होने बताया कि “वे अपने अंतिम दिनों में यहीं बस गये थे और यहीं एक कुष्ठ सेवा आश्रम में रहकर कुष्ठ रोगियों की सेवा कर रहे थे । वे शहीद भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद के साथी थे ।उन पर मुकदमा चला था और 1500 दिन की सज़ा उन्होने काटी थी ,वे अपने अंतिम दिनों में भटकते हुए यहाँ आ गये थे । जब उनके यहाँ रहने का पता चला तो हम लोगों ने उनसे सम्पर्क किया ।“
तिवारी जी ने बताया कि “उनकी मृत्यु के बाद क्रांति के इस नायक की स्मृति को बनाये रखने के लिये हम लोगों ने यहाँ उनकी इस मूर्ति की स्थापना की जिसका अनावरण  मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री  श्यामाचरण शुक्ल ने किया और शहीद भगतसिंह के भाई सरदार कुलतार सिंह जो उस समय उत्तरप्रदेश शासन में राज्यमंत्री थे उन्होने अध्यक्षता की । हज़ारों की भीड़ वाले उस कार्यक्रम में आज़ादी के कई सेनानी मन्मथ नाथ गुप्त,रामनरेश खत्री, भगवान दास माहौर,जमुना माहौर, राजेन्द्रपाल सिंह और कुन्दनलाल उपस्थित थे ।“
          जैसे ही हम लोग इस प्रतिमा स्थल पर पहुंचे प्रतिमा की स्थिति देखकर मेरा मन खराब हो गया । हेमंत खत्री की कॉर्न फ्लेक मिल के परिसर में स्थित थी यह प्रतिमा जो रखरखाव के अभाव में बहुत खराब स्थिति में थी । हम लोगों ने प्रतिमा की सफाई करवाई और फूल मालाएँ चढ़ाकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये ।
          तिवारी जी ने बताया कि उस समय एक क्रांतिवीर सुखदेव राज स्मृति समारोह समिति बनाई गई थी जिसमें वासुदेव चन्द्राकर,सरोजिनी नायकर, गोविन्द धींगड़ा, सुच्चासिंह और राज वर्मा के साथ वे भी थे और उन्होने सुखदेव राज जी पर एक पुस्तक भी प्रकाशित करवाई थी ।इस स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित करने और इसके रखरखाव के लिये तिवारी जी ने तीन बार मुख्यमंत्री को पत्र लिखा लेकिन शासन के कानों में जूँ नहीं रेंगी ,इसका उदाहरण आप इस चित्र में देख ही रहे हैं ।
हम लोग लौट आये यह सोचते हुए कि “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले” का क्या वास्तविकता में यही अर्थ होता है ? क्या वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा ?
आपका –शरद कोकास 







आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें

24 टिप्‍पणियां:

  1. शरद जी हेडिंग बदलिए ;" नेतावो की प्रतिमाओं ......"

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  2. गद्दी के लिए मरने वालो का यही बाकी निशाँ होगा !

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  3. बहुत बहुत धन्‍यवाद भईया इस जानकारी को यहां प्रस्‍तुत करने के लिए, सुबह आपके साथ जा रहे एवं आपके द्वारा नम्‍बर उपलब्‍ध कराए जाने पर आदरणीय श्री दानेश्वर शर्मा जी का फोन आया तब ज्ञात हो गया था क्‍योंकि श्री तिवारी जी नें अपने किसी लेख में इस संबंध में लिखा था.
    क्रांति के इस महा नायक को आपने श्रद्धा सुमन अर्पित किया यह हमारे समूचे हिन्‍दी ब्‍लाग जगत की ओर से उन्‍हें श्रद्धा सुमन हैं. वंदे मातरम. प्रशासन जागे या ना जागे ब्‍लागर जाग रहा है.

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  4. शरद जी, यह जानकारी मुझे भी इस पोस्ट से पहली बार मिल रही है कि छत्तीसगढ़ में सुखदेव जी की प्रतिमा है।

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  5. बहुत बहुत धन्‍यवाद भईया इस जानकारी को यहां प्रस्‍तुत करने के लिए, सुबह आपके साथ जा रहे एवं आपके क्षरा नम्‍बर उपलब्‍ध कराए जाने पर आदरणीय श्री दानेश्वर शर्मा जी का फोन आया तब ज्ञात हो गया था क्‍योंकि श्री तिवारी जी नें अपने किसी लेख में इस संबंध में लिखा था.
    क्रांति के इस महा नायक को आपने श्रद्धा सुमन अर्पित किया यह हमारे समूचे हिन्‍दी ब्‍लाग जगत की ओर से उन्‍हें श्रद्धा सुमन हैं. वंदे मातरम. प्रशासन जागे या ना जागे ब्‍लागर जाग रहा है.

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  6. प्रतिमाओं की ऐसी स्थिति देखकर बहुत ही दुखी हो जाता है,मन...बस साल में एक बार साफ़ सफाई कर फूल मालाएं अर्पित कर दी जाती हैं,और बाकी के ३६४ दिन वही हाल.....पहले प्रतिमाओं की सर्वदा देखभाल की व्यवस्था करने के बाद ही प्रतिमाएं स्थापित करनी चाहिए

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  7. शरद जी शीर्षक ही सब कुछ कह गया ..पोस्ट पढा तो यही लगा कि ....आज इस देश की यही गति होनी थी जो है ...और वो क्यों है ....ये भी मालूम चल गया ...

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  8. हर स्थान पर यही हालात हैं। नई आजादी की जंग के बिना कुछ ठीक न होगा।

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  9. इस जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !! यह हमारे यहाँ की विडम्बना है जिन्होंने देश की आज़ादी ही नहीं आपने अंतिम साँस तक देश और जरूरत मंदों की सेवा की उसकी प्रतिमा या तस्वीर की रखरखाव भी हम ठीक से नहीं कर पाते ।

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  10. people dont remember who are alive,leave alone the dead ones

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  11. यह पोस्ट पढ़कर अमिताभ बच्चन की एक फ़िल्म की याद आ गई, जिसमें वो किसी नेता को शहीद कर देते हैं और फ़िर मूर्ति बनवाकर उसका जैसे ही अनावरण करते हैं, उसके तुरंत बाद ही एक कौआ आकर बीट कर देता है, तो उनका डायलग होता है "तुम्हारी मूर्ति इसीलिये लगवाई है"

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  12. pratimao ki charcha ne kafi mahan anubhutiyon se parichye karvaya ,sundar lekh kai jaankariyon se avagat hui

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  13. यह जानकारी मुझे भी इस पोस्ट से पहली बार मिल रही है कि छत्तीसगढ़ में सुखदेव जी की प्रतिमा है।

    हतप्रभ भी हूँ हालात से

    बी एस पाबला

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  14. प्रतिमा बनवा देना ही बड़ी बात नही है किसी के प्रति इतनी श्रद्धा हो तो उनके प्रतिमा का रखरखाव भी ज़रूरी है बस राजनीति की खानापूर्ति के लिए यह उचित नही...बढ़िया चर्चा धन्यवाद

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  15. बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई आपके पोस्ट के दौरान! धन्यवाद!

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  16. यह रचना पढ़कर आनन्द आ गया बड़े भाई... (राजु)

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  17. Desh sabhee shaheedon ko bhool gaya hai..kya Gandhi kya Bhagat Singh....aalekh padhke hamebhee maloomaat milee...

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  18. क्रांतिकारी के आश्रम में पोहा मिल और धूल खाती सुखदेव-प्रतिमा
    प्रदेश के एकमात्र सांध्‍य दैनिक छत्‍तीसगढ़ नें इस पर खबर प्रकाशित की है यथा - जिस क्रांतिकारी ने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्‍यौछावर कर दिया और आजादी के बाद देशवासियों को प्रेरणा देने आश्रम की स्थापना की। उस क्रांतिकारी के गुजरने के बाद उसके परिजनों ने आश्रम की जमीन ही बेच दी। नतीजतन अब वहां पोहा मिल चल रही है।
    इसी मिल के एक कोने में इस क्रांतिकारी की प्रतिमा धूल खाती पड़ी है। रोजाना तो दूर की बात है,अब तो जयंती व पुण्‍यतिथि जैसे अवसर पर भी लोग इस प्रतिमा पर फूल चढ़ाने नहीं आते। गांव के आस-पास के लोग भी भूल गए हैं कि 36 साल पहले तक उनके बीच क्रांतिकारी सुखदेव राज रहा करते थे।
    दुर्ग के समीपस्थ अंडा गांव में क्रांतिकारी सुखदेव राज ने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए हैं। यहां उन्‍होंने एक आश्रम की स्थापना की थी,जहां वह अपनी सहायिका सरोजनी नायकर के साथ मिलकर कुष्ठ रोगियों की सेवा करते थे। उन्‍होंने इस आश्रम को आनंद विहार का नाम दिया था। स्नातक की शिक्षा प्राप्त सुखदेव राज हमेशा गेरुए वस्त्र पहने रहते थे और आसपास के ग्रामीण उन्‍हें स्वामी जी कहकर पुकारते थे।
    इस क्रांतिकारी के करीबी रहे शहर के वरिष्ठ फोटोग्राफर राज वर्मा व अंडा निवासी सˆयपाल सिंह ने बताया कि उनके दो बेटे पंजाब में रहते थे। राज वर्मा के मुताबिक
    सुखदेव राज की तबियत बिगडऩे पर उनके बेटों को खबर की गई थी। लेकिन पंजाब के कोई भी नहीं आया।
    ऐसे में राज वर्मा ने सुखदेव राज को सेक्‍टर-9 हास्पिटल मे दाखिल करवाया। यहां 3 जुलाई 1973 को उनकी मृत्‍यु हो गई। बेटों के नही आने की वजह से हरनाबांधा मुय्तिधाम मे श्री वर्मा ने ही उन्‍हें मुखाग्नि दी। श्री वर्मा ने बताया कि बाद में उन्‍होंने पहल कर जयपुर के मूर्तिकार रामकृष्ण से सुखदेवराज जी की प्रतिमा बनवा कर आश्रम
    में स्थापित करवाई।
    श्री वर्मा ने बताया कि स्व. सुखदेव राज ने 'न्‍योति जगी’ नामक से पुस्तक लिखी थी। जिसमें देश की आजादी में क्रांतिवीरों का उल्लेख किया गया था। इस पुस्तक से तत्‍कालीन मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्‍ल बेहद प्रभावित हुए थे और उन्‍होंने स्व. सुखदेव की प्रतिमा के अनावरण के लिए अपनी सहमति दी। 8 दिसंबर 1976 को हुए प्रतिमा लोकार्पण अवसर पर शहीदे आजम भगत सिंह के भाई व उत्‍तर प्रदेश के तत्‍कालीन रा…ज्‍यमंत्री सरदार कुलतार सिंह, अल्हड़ बीकानेरी, ओमप्रकाश आदित्‍य, गोविंद व्यास सहित अनेक क्रांतिकारी उपस्थित थे। उस समय तक वह जिले का सबसे बड़ा आयोजन था।

    इनकी स्मृति समारोह समिति के संरक्षक स्व. वासुदेव चंद्राकर, स्व. सरोजनी नायकर,
    अध्‍यक्ष वरिष्ठ अधिवक्‍ता व लेखक कनक तिवारी, सचिव राज वर्मा, सचिव गोविंद धींगरा
    थे। श्री वर्मा व सत्‍यपाल सिंह ने बताया कि लोकार्पण के उपरांत सुखदेव राज जी की
    सेविका सरोजनी नायर के जीवित रहते तक प्रत्‍येक वर्ष जयंती एवं पुण्‍य तिथि के दिन पूजा- पाठ एवं सत्‍संग कराया जाता था, जो अब बंद है। अब उनके समकालीन भी उम्रदराज हो चले हैं। इसके रखरखाव की ओर जिला प्रशासन भी कोई पहल नहीं कर रहा है।
    इन लोगों ने बताया कि सुखदेव जी अपना आश्रम अपनी सेविका सरोजनी नायर के नाम
    कर गए थे। श्रीमती नायर की तीन बेटियां थी। जब श्रीमती नायर की मौत हुई तो उसके बाद इनके बेटी-दामाद ने आश्रम की यह जमीन एक व्यवसायी को बेच दी। इसके बाद आश्रम का नामो-निशन मिट गया और आज यहां मक्‍का पोहा मिल चल रही है। यहीं मिल के पास सुखदेव जी की प्रतिमा धूल खाती पड़ी है। आश्रम की जमीन बेचने के बाद श्रीमती नायर की बेटियां दुर्ग-भिलाई में रहते हुए भी किसी से मिलना या इस बारे में बात करना पसंद नहीं करती है।
    विनोबा के कहने पर दुर्ग आए थे सुखदेव राज क्रांतिवीर सुखदेव राज का जन्‍म लाहौर में 7 दिसंबर 1907 को हुआ था। वह भगवती चरण सिंह बोहरा के संपर्क से क्रांतिकारी दल में आए।
    शहीदे आजम भगत सिंह व चंद्रशेखर आजाद के वे करीबी साथी थे। उन्‍होंने 3-3 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा दो बार काटी। जिसमे लंबे समय तक वह लाहौर जेल में भी थे। जब साइमन वापस जाओ के नारे लगाने के दौरान लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्‍यु हो गई, इसके बाद भगतसिंह एवं कुछ साथियों के साथ असेंबली में बम फेंक कर वे मुंबई भाग गए। जहां इन्‍होंने तीन पुलिस वालों को गोली मार दी इस दौरान
    वह पकड़ लिए गए।
    आजादी के बाद वह देश भ्रमण करते रहे और विनोबा भावे के के कहने पर वे 1963 में
    दुर्ग शहर आए। यहां वे इंदिरा मार्केट स्थित शिशु कल्याण केंद्र में अपनी सहायिका व नर्स सरोजनी नायकर ने साथ रहकर लोगों की सेवा करने लगे। तश्‍पश्चात व स्वयं की जमीन लेकर समीपस्थ ग्राम अंडा में चले गए। जहां उन्‍होंने सरोजनी नायकर के साथ मिलकर आश्रम की स्थापना की।

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  19. pratimaayein to aajkal raajneeti ka sadhan-matr ban kar rah gayi hai... halaat teji se bigadte ja rahe hain.. democracy aur red-ribbonship khaye ja rahi hai hamare desh ko..

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  20. pratimayein to rajneeti ka sadhan-matr ban kar rah gayin hain... halat badtar hoti ja rahi hai... bureaucracy aur red ribbon ship ne hawa nikaal di hai... apna to democracy mein upar wala hi malik hai!!!

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  21. सर जी । गोदियाल साहब ने सही लिखा है क्रपया शीर्षक बदलें ।प्रतिमाओं की हर जगह यही हालत है रखरखाव का अभाव है

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  22. गरीब आदमी तो रोजी-रोटी की लड़ाई से ऊपर उठे तो किसी और चीज़ के बारे में सोचे. नेताओं के पेट इतने भरे हैं की उनकी नींद कभी खुले तो सोचें. आप लोग एक देशभक्त को श्रद्धा सुमन अर्पित कर आये, इसकी बधाई.

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आइये पड़ोस को अपना विश्व बनायें