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14 जून 2021

4. व्वा रे शेर ! आ गया शेर!


महाराष्ट्र निर्माण के प्रारम्भ में यह स्थितियाँ नहीं थीं लेकिन कुछ ही दिनों बाद प्रांत की सीमाओं पर रहने वाले लोग विशेषकर तेज़ी से महानगर बनते हुए नागपुर और आसपास के लोगों ने यह महसूस किया कि उनकी कहीं न कहीं उपेक्षा हो रही है वे प्रशासन की मुख्यधारा से स्वयं को अलग थलग महसूस कर रहे थे । वैसे भी महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई वहाँ से काफी दूर थी और प्रत्येक कार्य हेतु राजधानी का मुँह ताकना होगा इस बात को लेकर सामान्य जनों में निराशा व्याप्त थी । वे अपनी निर्धनता, विपन्नता, समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय के लिये इस तरह के प्रांतविभाजन को दोषी ठहरा रहे थे और उनकी इस असहाय स्थिति  में एक आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी ।

 तात्कालिकता के दबाव में उन्हें एक ही उपाय सूझ रहा था कि विदर्भ को शेष महाराष्ट्र से अलग कर दिया जाये । उनकी स्मृति में  राज्य पुनर्गठन आयोग की विदर्भ को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने की अनुशंसा और राज्यों के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली जन समिति महाविदर्भ समिति द्वारा बैतूल, खंडवा, छिंदवाडा और बालाघाट  को भी विदर्भ राज्य में शामिल किये जाने की अनुशंसा शामिल थी

         आम जनों की इस दुखती रग पर विदर्भ के ही एक सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता  जाम्बुवंत राव धोटे ने अपना हाथ रखा और उनके नेतृत्व में राज्य निर्माण के प्रारम्भिक दिनों से ही पृथक विदर्भ हेतु आन्दोलन प्रारम्भ हो गया । जाम्बुवंत राव धोटे विदर्भ के बहुत लोकप्रिय नेता थे और जनता द्वारा ‘विदर्भ वीर’ तथा ‘विदर्भ का शेर’ जैसे विशेषणों से विभूषित किये जाते रहे वे पांच बार महाराष्ट्र विधानसभा के विधायक निर्वाचित हुए मुझे याद है बचपन में जब उनकी सभाएँ होती थीं उनमे बेतहाशा भीड़ उमड़ती थी और लोग नारे लगाते थे ‘ व्वा रे शेर , आ गया शेर

  विदर्भ वीर जाम्बुवंत राव धोटे ने सर्वप्रथम उन्नीस सौ बासठ में फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी से विदर्भ की यवतमाल सीट से महाराष्ट्र विधानसभा के विधायक पद के लिए चुनाव लड़ा और विजयी हुए फिर वहीं से सडसठ में विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा और उन्नीस सौ इकहत्तर में कांग्रेस को हराकर नागपुर से पांचवीं लोकसभा के सांसद बने उन्नीस सौ अठहत्तर में जब इंदिरा गाँधी ने इंदिरा कांग्रेस का निर्माण किया उन्होंने इंदिरा कांग्रेस ज्वाइन कर ली और नागपुर से ही उन्नीस सौ अस्सी में सातवीं लोकसभा के लिए सांसद का चुनाव जीता लेकिन बाद में उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया और सन दो हज़ार दो में उन्होंने विदर्भ जनता कांग्रेस नाम से नई पार्टी बना ली जिसका उद्देश्य पृथक विदर्भ निर्माण था

 विदर्भ वीर जाम्बुवंत राव धोटे का यह आन्दोलन काफी समय तक चलता रहा लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इस आन्दोलन का भी वही हश्र हुआ जो ऐसे आन्दोलनों का होता है । उन्होंने अपनी और से भरसक प्रयास किया और लोगों के बीच एक राजनैतिक चेतना का निर्माण किया अंततः  दो हज़ार सत्रह में इस विदर्भ वीर का निधन हो गया

 पृथक विदर्भ के निर्माण में प्रारंभ से ही अनेक अडचनें रही हैं राजनेताओं के सामने अन्य समस्याएँ इससे बड़ी थीं इनके अलावा  प्रांत की सीमाओं पर रहने वाले तथा सुदूर वनांचलों में रहने वाले लोगों की भी अनेक समस्याएँ थी जिनका समाधान नहीं हो रहा था  । आज वे समस्याएँ विकराल रूप धारण कर चुकी हैं । पूरे देश के साथ महाराष्ट्र भी वर्तमान में अपनी सीमा पर नक्सल समस्या से जूझ रहा है । दरअसल इसकी जड़ें उन दिनों की परिस्थितियों में है जिनकी ओर सत्ता का ध्यान कभी नहीं गया । आज हम आये दिन विदर्भ के किसानों द्वारा आत्महत्या किये जाने की खबरें सुनते हैं । अन्य कारणों के अलावा इनके पीछे एक अप्रकट कारण आज़ादी के बाद राजनैतिक सत्ता द्वारा तत्कालीन विदर्भ की उपेक्षा भी हो सकती है ।  

शरद कोकास