नये साल का उत्साह अभी थमा नहीं है ,उमंग का एक झरना बह रहा है ..घर से बाहर निकलो तो हर कोई हैप्पी न्यू इयर कह कर हाथ बढ़ा देता है । कोई नहीं पूछता कि भाई कोई तकलीफ तो नहीं ? अब हम मनुष्य ही हैं ..साधारण मनुष्य ! क्या करें... बह जाते हैं इस प्रवाह में और डुबकी लगाने से पहले नदी के किनारे उतार कर रखे गये कपड़ों की तरह सारे दुख-दर्द उतारकर रख देते हैं । नये साल की इस उमंग में डुबकी लगाकर बाहर आ जायेंगे तो फिर ओढ़ लेंगे अपने दुख दर्द । जिसे देखो वह नये साल की ही बात कर रहा है .. पुराने साल की कोई बात ही नहीं करता । यही सोचते सोचते मुझे खयाल आया कि अब पुराने की कोई ज़रूरत ही नहीं है तो क्यों न इसे कबाड में बेच दिया जाये .। पुराने साल के साथ बेच दिये जायें पुराने साल के झगड़े,वैमनस्यता ,विद्वेष और बचा कर रख लिया जाये प्यार ,सौहार्द्र,भाईचारा । घर में भी पुराना सामान बेचते हुए हम यही करते हैं , जो काम की चीज़ है उसे रख लेते हैं और बाकी बेच देते हैं ....सो मौज मौज में अपने स्टेटस में लिख दिया .".कबाड़ी आया क्या ..?" अब भाई गिरिजेश राव ने इसे पढ लिया और सोचा चलो कबाड़ी आये तो मैं भी कुछ बेच दूँ सो चैट पर वे उपस्थित हुए और लिखा....
गिरिजेश: मुझे पेपर बेंचना है।
Sent at 8:27 PM on Sunday
शरद: मुझे पिछला साल बेचना है
गिरिजेश: क्या बेंचोगे कोई खरीददार नहीं मिलेगा
गुजरे लम्हों के पास प्यार नहीं मिलेगा।
शरद: ऐसी ही करती है यह दुनिया दिल्लगी
दिल लेकर घूमोगे दिलदार नहीं मिलेगा
गिरिजेश: गुनाह फिरा करते हैं नंगे ही सड़कों पर
उजाले अन्धेरे का कोई गुनहगार नहीं मिलेगा।
शरद: फुटपाथ पर गुजर गई जिनकी ज़िन्दगानी
उन्हे इस सदी में तो घरबार नही मिलेगा
गिरिजेश: घूमते हैं घायल दिल हथेली पर लिए
दर्द है बहुत तीमारदार नहीं मिलेगा?
शरद: भूख लगी है बहुत सुबह से कुछ खाया नही ..
जाऊँ नहीं तो रात का आहार नही मिलेगा
गिरिजेश: अरे महराज जाने से पहले इसे चैट ग़जल नाम से छाप दीजिए। दोनों का नाम हो जाएगा।
शरद: अरे... यह तो नया प्रयोग हो गया ...वाह!!!
गिरिजेश : और क्या! अभी पोस्टिया दीजिए।
शरद: इसे सेव कर लीजिये और मुझे मेल कर दीजिये बाक़ी मै कर लूंगा ।
तो यह थी दो कवियों की जुगल बन्दी .. नये साल पर इतनी बदमस्तियाँ तो जायज़ हैं ना ? आप सभी पड़ोसियों को नये साल की शुभकामनायें ...।
आइये पड़ोस को अपना विश्व बनायें
आप दोनों की इस दिल्लगी ने गुदगुदाया।
जवाब देंहटाएंथोड़ा अच्छा सा लगा।
वाह! क्या बात है! अब चैट से ग़जल जुगलबंदी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रही जुगल बंदी यह प्रयोग अच्छा है
जवाब देंहटाएंभूख लगी है बहुत सुबह से कुछ खाया नही ..
जाऊँ नहीं तो रात का आहार नही मिलेगा
भाभीजी को भी सुना दीजियेगा तो आहार जल्दी मिल जावेगा
बहुत बढिया शरद भाई,नये साल की एक बार और बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत खुब , आपको नव वर्ष की हार्दिक बधाई ,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाई बातों ही बातों में क्या बेहतरीन ग़ज़ल बन गई..बहुत बढ़िया नये साल की बधाई हो!!!
जवाब देंहटाएंबढिया है।
जवाब देंहटाएंभूखे पेट की गई जुगलबंदी लाजवाब है...
जवाब देंहटाएंवैसे शरद भाई, अब तो अजित वडनेरकर जी की जन्मदिन की दावत भी ख़त्म हो गई होगी...वो भी अब शब्दों के सफ़र के ज़ायके से ही टरका देंगे...
जय हिंद...
"वाह, शरद जी, कोई जवाब नहीं आपके अनूठे सोच का!"
जवाब देंहटाएं--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
बहुत बेहतरीन जुगलबन्दी दो दिग्गजों की!!
जवाब देंहटाएंराने साल के साथ बेच दिये जायें पुराने साल के झगड़े,वैमनस्यता ,विद्वेष और बचा कर रख लिया जाये प्यार ,सौहार्द्र,भाईचारा ।
-दान कर दिजिये...खरीदने में बंदा शर्मायेगा. गुप्त दान!!
इस आवारगी का मज़ा तो बस ब्लाग ही पर है
जवाब देंहटाएंप्रिण्ट में तो इसका कोई कद्रदान नहीं मिलेगा!
भूख लगी है बहुत सुबह से कुछ खाया नही ..
जवाब देंहटाएंजाऊँ नहीं तो रात का आहार नही मिलेगा.:)
मैने कुछ कहा था
उसने कुछ सुना था
बहुत ही रोचक गुफ्तगू रही ये तो....अच्छे आशु कवि हैं आप दोनों...(कवि तो हैं हीं)
जवाब देंहटाएंएक आईडिया भी आया है...कुछ ऐसी ही शेरो शायरी वाली गुफ्तगू एक सहेली ने SMS पे की थी...पढ़ कर पूरा कव्वाली का मजा आया था...मैं भी पोस्ट करती हूँ,कभी,उसकी इजाज़त लेकर.
दो महान गजलकारों के बीच जो आएगा सो दाल भात में मूसल चंद ही बनेगा -चल छिटक ले छुटकू यहाँ से, आसार कुछ ठीक नजर नहीं आ रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंइसे बहर में लाईये या तरही रूप दीजिये ! तब जानू हा हा
अरे वाह!!!! बहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंनया प्रयोग बहुत रोचक रहा..
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे , ई गिरिजेश जी से चैटियाते समय बहुत सतर्क रहना पडता है शरद जी, आलसी हैं न सो चैटियाते चैटियाते ही पोस्ट का जुगाड भी कर लेते हैं । मगर जब दो कवि चैटियाएंगे तो फ़िर तो यूं ही शब्दों का सिलसिला बनेगा । बहुत खूब , रोजाना न सही , मगर अंतराल पर ही चैटियाते रहिए , और हमें पढाते रहिए
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बहुत सुंदर जी, कमाल कर दिया आप ने, लेकिन बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयह तो गलबंदी है
जवाब देंहटाएंपर गलाबंदी न हो जाये
नये बरस की
पूरे बरस देते रहेंगे
शुभकामनायें।
बहुत मज़ा आया इस जुगलबंदी में ......... दिग्गजों की हर बात निराली होती है .........
जवाब देंहटाएंवाह ! अभिनव !
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी शामिल हैं न इसमें ? प्रयोगधर्मी !
आभार ।
ये टिप्पणीकारों के नाम/लिंक लाल से दूजे रंग के नहीं हो सकते ? आँख दुखती है मेरी ।
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