23 अक्तूबर 2009

डेज़ी नहीं रही पाबला जी !!

फिर कांग्रेस की ध्वजा लहराई |  महंगाई बढने के आसार |  लोन अब सस्ते होंगे |  सरकारी दफ्तरों में छापा । इस हफ्ते रिलीज़ फिल्म सुपर हिट । बाबा के प्रवचन में हज़ारों की भीड़ ।
अखबार में छपी इन भारी भरकम खबरों के बीच मै अगर कहूँ कि “ पाबला जी की प्यारी डॉगी डेज़ी नहीं रही “ तो आप कहेंगे यह भी कोई खबर है। संवेदनाहीन होते जा रहे इस समाज में मनुष्य की मृत्यु भी अब झकझोरने वाली खबर नहीं रही । हत्या,दुर्घटना ,दंगे के समाचार भी अब हम उचटती नजर से पढ़ते हैं और पन्ना पलट देते हैं । हमें ग्लैमर चाहिये जो हमें अपनी पसन्द के पन्नों और चैनलों मे मिल जाता है ।
इसलिये यह खबर भी हमें नहीं झकझोरेगी कि पाबला जी के परिवार की यह सदस्य दिवाली में फोड़े गये पटाखों से उपजे शोर और प्रदूषण का शिकार हो गई । वैसे भी एक कुत्ते की जान की क्या कीमत ? लेकिन हम यह भूल गये हैं कि यह कुत्ता ही मनुष्य का पहला दोस्त है । अगर आपने कान्धे पर भाला रखे आदिम मानव और उसके पीछे चलते हुए कुत्ते का चित्र देखा हो तो इस बात को समझ सकते हैं । यह प्राणि मनुष्य का सच्चा साथी है और उसके साथ लाखों वर्षों से सहअस्तित्व बनाये हुए है। तथ्य यह है कि अपनी प्रजाति में कुत्ता गाँव या शहर में मनुष्य के साथ उसकी बस्ती में ही रह सकता है और जंगल में अकेले जीवित नहीं रह सकता । यह भी एक तथ्य है कि मनुष्य के और कुत्ते के पचहत्तर प्रतिशत से भी अधिक जींस एक जैसे होते हैं । एक जैसे कई गुण होते हुए भी उसकी स्वामिभक्ति,प्रेम और दुलार का गुण मनुष्य में अब तक नहीं आ सका है ।मनुष्य राह चलते हुए किसी दुर्घटना ग्रस्त स्थान पर रुकना तो दूर भीड़ देख अपना रास्ता तक बदल लेता है । उसे परवाह नही होती, कोई मरे या जिये उसकी बला से लेकिन कुत्ते कई महिनों तक उनके जैसे किसी कुत्ते को कार या स्कूटर द्वारा कुचले जाने पर उसके पीछे दौड़ते है क्योंकि उनके लिये वह वाहन उनके भाई बन्द का हत्यारा होता है ।
कल शाम पाबला जी से इस दुखद समाचार को पाकर मै भी बहुत व्यथित हुआ फिर द्विवेदी जी से भी बात हुई उन्होने अपनी संवेदना प्रकट करते हुए ब्लॉग अनवरत पर एक पोस्ट लगाई है जहाँ आप डेज़ी के बारे में पढ़ सकते हैं । मै कवि हूँ सो मनुष्य के इस वफादार मित्र पर लिखी कवितायें तलाशता रहा । आश्चर्य ! कमला दास सुरैया ,नरेश चन्द्रकर से लेकर फैज़ अहमद फैज़ कई कवियों ने इस पर लिखा है । सोचा था सभी की कवितायें दूंगा लेकिन रात इंटरनेट की समस्या की वज़ह से पोस्ट नहीं कर पाया सो यह फिर कभी । आज श्रद्धांजली स्वरूप मनुष्य के कुत्तों को लेकर अन्धविश्वास पर 1984 में लिखी अपनी कविता “हम आदमी हैं कुत्ते नहीं” का यह प्रारम्भिक अंश ।

                                                           कुत्ता क्यों रोता है ?

कल रात मेरी गली में एक कुत्ता रोया था        
और उस वक़्त आशंकाओं से त्रस्त 
कोई नहीं सोया था
सब अपने हाथों में लेकर खड़े थे 
अन्धविश्वास के पत्थर 
कुत्ते को मारने के लिये तत्पर 
किसी अज्ञात आशंका से सब भयभीत थे 
डर के कारण सबके चेहरे पीत थे 
किसी ने नहीं सोचा
कि कुत्ता क्यों रोता है


अरे! 
उसे भी भूख लगती है
उसे भी दर्द होता है ।
                                   शरद कोकास                                                       
आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें: चित्र गूगल से व पाबला जी से साभार

32 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे पाबला जी के दर्द का अहसास है. ऐसे हादसे से गुजर चुका हूँ..काश!! आप पूरी कविता पेश करते..अब से कर दिजिये..


    कभी छोटी सी रचना मैने ब्लॉग पर लिखी थी:

    मँहगाई ने दिखाया
    यह कैसा नजारा.
    हर इंसान तो परेशान है
    दो जून की रोटी के
    इंतजाम में..
    उसे क्या देता...

    गली का कुत्ता था
    मर गया बेचारा!!

    http://udantashtari.blogspot.com/2008/06/blog-post_09.html

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  2. किसी भी पशु या पक्षी को पाल लेने के बाद वह परिवार का सदस्य बन जाता है और परिवार के सभी सदस्यों को उससे मोह हो जाता है। परिवार के एक सदस्य की मृत्यु का शोक असहनीय होता है। ईश्वर पाबला जी को डेजी के वियोग सहन करने की शक्ति प्रदान करे और डेजी की आत्मा को शान्ति।

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  3. क्या लिख दिया आप ने दिल की बात छीन ली अरे ये वही प्रजाति है जब हमारे पूर्वज जंगल में शिकार करने जाते थे तो इन्ही कुत्तों के सहारे अपने बच्चों और घर को छोड़ जाते थे पर आदमी जंगल से बाहर आ गया और इन्हे भी अपने साथ लाया घर की पहरे दारी कराई खेत खलिहान बचवाये पर अब आधुनिक मशीनी युग में आदम को इनकी जरूरत नही रह गयी तो छोड़ दिया सड़क पर ये कह कर गली का आवारा कुत्ता ?? न्मेरे यहां एक कहावत है शरद जी कि कभी ये धरती इन्ही कुत्तों की थी मुझे नही मालूम ये किस कारण कहा गया पर विग्यान का विद्यारथी हूं तो इतना जरूर जानता हूं कि धरती पर ये प्रह्जाति हम से पहले से रह रही है और इस लिये इनका हक भी हम से पहले है पर हम ठहरे बेईमान, मक्कर, लालची, चोर.न जाने क्या क्या......

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  4. किसी ने नहीं सोचा

    कि कुत्ता क्यों रोता है





    अरे!

    उसे भी भूख लगती है

    वह भी तो इंसानों जैसा ही होता है !

    बहुत सुन्दर !!!

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  5. बिल्कुल सच की ओर जाती आपकी यह कविता और सुंदर विचार..आख़िर जीव तो जीव होता है वो मनुष्य हो या जानवर भूख तो उसे भी लगती है...लोग नही समझते है??

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  6. शरद जी ,
    मैंने बहुत पहले ही ये दुख सहा था ..और घोर सहा था, मुझ सहित पूरे परिवार पर ये दुख बडा भारी पडा था....और माता जी तो जैसे मुर्झा ही गई थीं। मैं जानता हूं कि पाबला जी के परिवार में और खुद पाबला जी को डेजी की कमी कितनी और कब तक,,,शायद ताउम्र खलेगी, ..और क्या कहूं इससे ज्यादा कि मेरे लिये ये एक अप्रत्याशित दुख की खबर थी।

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  7. शरद जी, मैंने तो पहले ही आगाह किया था. ये दिवाली के बम किसी का भी दम निकाल सकते हैं. उस पर भी कुछ लोगों को आपत्ति हुई थी.
    आपकी कविता अति संवेदनशील है और सोचने पर मजबूर करती है.

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  8. ऐसी दुनिया जहां इंसान ने अपने लिए भी संवेदनाओं का स्पेस नहीं छोड़ा है पाबला जी दुर्लभ लोगों में से हैं और आप भी जिन्होंने इस विडंबना पर ध्यान दिया

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  9. जिस प्राणी को पाल लो , उससे मोह होना स्वाभाविक है, मैं भी ऐसी स्थिति से गुज़र चुकी हूँ ...मुझे .पाबला जी की मनोदशा का अंदाजा है

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  10. इस कविता को पूरा पढवाइये
    एकदम से हतप्रभ हूं
    किसने देखा था इस रोने को पहले?

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  11. ईश्वर पाबला जी को डेजी के वियोग सहन करने की शक्ति प्रदान करे और डेजी की आत्मा को शान्ति।
    मुझे भी पाबला जी के दर्द का अहसास है,मैं भी ऐसे हादसे से गुजर चुका हूँ|

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  12. कल द्विवेदी जी के ब्लॉग पर भी यहे पढा था आज यहाँ हमें पाबला जी के साथ हमदर्दी है

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  13. ईश्वर पाबला जी को डेजी के वियोग सहन करने की शक्ति प्रदान करे और डेजी की आत्मा को शान्ति। मुझे भी पाबला जी के दर्द का अहसास है,मैं भी ऐसे हादसे से गुजर चुका हूँ|

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  14. pabla ji ka dukh hm sab ka dukh hai hr ghar ke nukkad pe roj koi na koi kutta roj hi rota hai hum galiyan nikalte hai such uske dard ya uski bhook ko hum nahi samajhte hum insan hai ya kavi shak hota hai

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  15. शरद सर, न कभी डेजी को देखा न मिला, लेकिन सहज ही उसके जाने की तकलीफ महसूस कर सकता हूँ क्योंकि डेजी की ही तरह हमारे घर में भी जूली हुआ करती थी जिसकी स्वामिभक्ति की आज भी आसपास वाले मिसालें देते हैं..
    आपकी लिखी कविता ने तो एकदम झंकझोर दिया, साथ ही समीर जी की कविता ने भी...

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  16. पालतू परिवार के सदस्यों की तरह ही प्रिय हो जाते हैं ...
    डेजी को श्रद्धांजलि ...!!

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  17. शरद भाई देर से इधर आया तो ये दुखद समाचार मिल रहा है।पाब्ला जी से भी कुछ इनो से बात नही हो पाई है।डेज़ी का जाना वाकई बहुत पीड़ादायक है और हम इसकी क्ल्पना ही कर सकते हैं।भोगेगा तो पाब्ला परिवार्।मेरे परिवार मे भी ये शौक था लेकिन पिछ्ले कुछ सालों से बंद है,कारण वही है डेज़ी की तरह हमारे परिवार मे सबको प्यारे सदस्य गोलू का चले जाना।इससे पहले भी कई गये थे मगर गोलू 14 साल रह कर गया और इतना लम्बा समय उसे खास स्थान दिला चुका था।उसके जाने के बाद बहुत बार सोचा गया मगर फ़िर हिम्मत ही नही हुई।छोटा भाई और बहन का तो खाना ही छुट गया था।काफ़ी समय लगा उनको सामान्य होने मे।क्या कहा जा सकता है शरद भाई सिवाय इसके कि ईश्वर पाब्ला परिवार को इस दुःख को सहने की शक्ति दे।

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  18. पाबला जी के दुख में हम सभी साथ हैं...

    जय हिंद...

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  19. डेज़ी का जाने का दुख है

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  20. Ek jaanwar aadmee se badhke pyaar karta hai...usse jitnee der baad milo wo utna adhik pyarse milta hai..na gila na shikva....aise pranee ke maut ka dard samajh saktee hun...

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  21. डेजी की प्रदूषण की वजह से हुई मृत्यु को सुन कर अच्छा नहीं लगा । फैज़ ने कुत्ते को प्रतीक बना कर उसकी तुलना पाकिस्तान में फौजी हुकूमत के अत्याचारों में पिस रहे आवाम से की थी। शुरुआती पंक्तियाँ कुछ यूँ थीं।

    ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
    कि बख्शा गया जिनको जौके गदाई
    जमाने की फटकार सरमाया इनका
    जहां भर की दुतकार इनकी कमाई
    ना आराम शब को ना राहत सवेरे
    गलाजत में घर , नालियों में बसेरे


    पूरी नज़्म आप़ यहाँ देख सकते हैं।

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  22. बिल्‍कुल सही एवं सच्‍चाई प्रकट करते यह शब्‍द भावुक कर जाते हैं, हम भी गुजरें हैं इन्‍ही लम्‍हों से पालतू पक्षी हो या जानवर इनके साथ होने से इतना अपनापन हो जाता है इनसे, पाबला जी के परिवार में भी सब दुखी होंगे खासतौर पर बच्‍चे तो बिल्‍कुल ही ऐसी बातों को दिल से लगा लेते हैं बड़े सम्‍हाल लेते हैं खुद को ।

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  23. आप सभी की संवेदनाओं, सहानूभूति, प्रार्थना, सांत्वना से हमारे परिवार को एक अनहोनी से उबरने हेतु संबल मिला।
    आभार आप सभी का।

    बी एस पाबला

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  24. किसी ने नहीं सोचा
    कि कुत्ता क्यों रोता है
    अरे!
    उसे भी भूख लगती है
    उसे भी दर्द होता है ।
    Bahut acha. Sabhi ko dart hota hai chaheye aadmi ho ya janwar. Dukh is baat hai ki aaj bahut kam logon mein savedansheelta dekhti. Bahut achhi rachna ke liye badhai.

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  25. जानवरों के प्रति हमदर्दी इंसानियत का पहला कर्तव्य भी है ! और कुता सबसे अच्छा दोस्त होता है , लेकिन जो इस दुःख से गुजरता है उसे ही पता चलता है,
    वो क्या जाने पेड पराई,
    जाके पैर न फटे बिवाई !!!

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  26. hamare yahan bhi deji naam ka kutta raha aur ,har wo cheej jo mahsoos karne ke kabil hai use dard hota hai ,sabhi jeevo ki bhavnao ko hame samjhana chahiye ,sundar aalekh

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  27. कोई भी अपना, जो दिल के बेहद करीब हो, जब दूर जाता है, तो दर्द तो होता ही है।
    ------------------
    परा मनोविज्ञान-अलौकिक बातों का विज्ञान।
    ओबामा जी, 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।

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  28. भारतीय परम्परा में घर के पशु घर के सदस्य होते हैं. मुझे याद है अम्मा खाना बनाते समय विशेष रूप से कुत्ते और गाय के लिये रोटी बनाती थी, न कि बची हुयी रोटी देती थी.

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  29. Bahut dinon baad aapke blog pe aayee hun...ye aalekh padha tha, lekin fise padhene ka man hua..
    Kaash insaan kamse kam insaan banke rahe..

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://fiberart-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  30. hmare ghar me bhi ak pameriyan hai uska nam joohi hai jo abhi 17 sak ki hai jise hme dipavali par poore samy god me lekar baithna hota hai .

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आइये पड़ोस को अपना विश्व बनायें