13 जनवरी 2012

सूपा , हंडी और धनुष से बना वाद्य यंत्र - सुमिन बाई का धनकुल


13 वें "रामचन्द्र देशमुख बहुमत सम्मान का आमंत्रण जब बहुमत पत्रिका के सम्पादक विनोद मिश्र जी ने भेजा तो सबसे पहले यह जानने की उत्सुकता हुई कि इस बार यह सम्मान किसे दिया जा रहा है । कार्ड खोलकर देखा तो एक नितांत अपरिचित नाम .. सुमिन बाई बिसेन । मुझे याद ही नहीं आया कि इनका कभी नाम सुना हो । फिर जब सुमिन बाई की विधा पर नज़र डाली तो और भी अधिक आश्चर्य हुआ । सुमिन बाई धनकुल नाम का एक वाद्य का वादन करती है और साथ ही गायन भी करती हैं ।
जब इस वाद्य के बारे में पढ़ा तो और भी अधिक आश्चर्य हुआ । सुमिन बाई चावल फटकने वाले एक सूपे , एक हंडी और एक धनुष को बाँस की किमची से बजाती हैं । इतना पढ़कर उत्सुकता और बढ़ गई और मैं कार्यक्रम की राह देखने लगा ।
आज 12 जनवरी 2012 को सुमिन बाई को यह सम्मान प्रदान किया गया । इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति श्री सच्चिदनन्द जोशी । अध्यक्षता कर रहे थे छत्तीसगढ़ शासन के संसदीय सचिव श्री विजय बघेल । मुख्य वक्तव्य दिया सुप्रसिद्ध पत्रकार और हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष श्री रमेश नैयर । आलोचक जयप्रकाश व कलासमीक्षक राजेश गनोदवाले ने धनकुल परम्परा पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की ।
इसके बाद वह क्षण आया जिसकी मुझे प्रतीक्षा थी । बहुत ही सादे वस्त्रों में उपस्थित सुमिन बाई अपने दो सहयोगियों के साथ और अपने वाद्य यंत्र के साथ मंच पर आई । उन्होंने सर्वप्रथम एक हंडी को रखा , उस पर अनाज फटकने का एक सूपा रखा फिर उस पर धनुष की प्रत्यंचा टिका दी । उनके हाथ में बाँस की एक कमची थी । उस कमची को उन्होंने प्रत्यंचा पर रगड़ना शुरु किया और एक अद्भुत ध्वनि उत्पन्न हुई । फिर उन्होंने गायन प्रारम्भ कर दिया ।
तिजा जगार , चारखा गीत , शिव पार्वती प्रसंग ,एक एक कर वे सुनाती गईं और लोग सुनते गये । कई लोग बार बार मंच के पास आकर उनके इस वाद्य यंत्र को देख रहे थे , उन्हे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी मामूली वस्तुओं से भी ऐसी ध्वनि निकल सकती है ।
बाँये से ऋषि गजपाल , शरद कोकास , सुमिन बाई व सहयोगी
जोशी जी ने बताया कि बरसों पहले ऐसे ही एक कलाकार कश्मीर से आया था और उसने अपने वाद्ययंत्र की प्रस्तुति दिल्ली आल इंडिया रेडियो पर देनी चाही थी लेकिन रेडियो वालों ने कहा कि यह वाद्ययंत्र उनके यहाँ लिस्टेड नहीं है सो वे कोई और कार्यक्रम प्रस्तुत करें । वे कलाकार थे पं.शिवकुमार शर्मा और उनका वाद्ययंत्र था सरोद ।
गनीमत है कि इस वाद्ययंत्र को यहाँ पहचाना जा चुका है और सुमिन बाई मध्यप्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद तथा छत्तीसगढ़ शासन के अनेक कार्यक्रमों में यह प्रतुति दे चुकी हैं ।
लेकिन ऐसी कला को विलुप्त होने में क्या देर लगती है ? आज जहाँ कम्प्यूटर से संगीत उत्पन्न किया जा रहा है वहाँ सूपे , हंडी और धनुष की क्या बिसात ?
जोशी जी का किस्सा सुनते हुए मुझे याद आया ऐसे ही हम लोग हॉस्टेल में जाने क्या क्या बजाया करते थे । एक दिन हमारे सीनियर और वर्तमान में प्रसिद्ध कवि और आलोचक श्री लीलाधर मंडलोई ने हम लोगों का संगीत सुना और वे हमे आकाशवाणी ले गये थे युववाणी में प्रस्तुत करने के लिये । बहरहाल वह किस्सा फिर कभी ।
आज आप धनकुल नामक इस अद्भुत वाद्य का चित्र देखिये और बधाई दीजिये लोक कलाकार सुमिन बाई बिसेन को ।


sharad kokas  

9 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut,bahut badhayee Sumin Bai ko!
    Ek arse baad aapko blog pe paya!

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  2. वाह...नई जानकारी मिली...एक से एक प्रतिभायें हैं जिनकी जानकारी ही नहिं हो पाती...आपका आभार...सुमिन बाई को नमन!!

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  3. bahut acchi post magar sharad ji jigyasa hai ki pt shiv kumar sharma Santuur ke ilava kya Sarod bhi bajate hai ?

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    1. वे केवल संतूर ही बजाते हैं उनसे सम्बन्धित जानकारी आपको यहाँ मिल सकती है http://www.santoor.com/

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  4. सुमिन बाई को बधाई और आपको इस पोस्ट के लिये आभार।

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  5. बहुत सुन्‍दर रपट भईया; इसे आज सुबह ही गूगल रीडर पर पढ़ चुका था, अब टिप्‍पणियों के साथ पढ़कर अच्‍छा लगा.

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  6. बहुत सुंदर ,लोक-विद्या का मौलिक और सहज अंदाज | इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए शुक्रिया |

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  7. कमाल का वाद्य लगा ये धनकुल और हमारे सुमिनबाई जैसे लोग जिन्होने इस परंपरा को चलाये और जिलाये रखा है ।

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