भिलाई में जन संस्कृति मंच के बारहवें राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए “मुक्तिबोध व्याख्यान माला” के अन्तर्गत “ सत्ता और संस्कृति “ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए प्रख्यात कवि और पत्रकार मंगलेश डबराल ने कहा -
* “सत्ता को आज अपने दुष्कृत्य के लिए कोई ग्लानिबोध नहीं है ।
*अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ समझौता कर भारतीय शासक वर्ग सार्वजनिक संसाधनों की लूट में लगा है । *साधारण जन के प्रति सत्ता बिलकुल संवेदनहीन हो चुकी है । आम जन की तकलीफ़ो , विस्थापन , और शोषण उत्पीड़न के लिए ज़िम्मेवार सत्ता को भारत के नवधनाढ्य , नए मध्यवर्ग का निर्लज्ज साथ मिल रहा है।
*यह साधारण जन , आदिवासी , किसान , मजदूरों के बड़े सांस्कृतिक मूल्यों को उजाड़कर सत्ता अपने सांस्कृतिक वर्चस्व को स्थापित करने में लगी हुई है ।
*बर्बर सैन्य हमलों पुलिसिया दमन के साथ मीडिया के ज़रिये उपभोक्तावादी , आत्मकेन्द्रित संस्कृति के प्रचार के ज़रिये भी सत्ता जनता की सामूहिकता और प्रतिरोध के उसके सांस्कृतिक मूल्यों को नष्ट करने में लगी हुई है । *ऐसे में साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों को सत्ता के साथ अपने रिश्ते को पुनर्भाषित करना होगा । राज्य ,पूंजी , बाज़ार , उसके उत्पाद या उसकी राजनीति के खिलाफ मुक्तिबोध सरीखे रचनाकारों की परम्परा को आगे बढ़ाना होगा । जनता के सांस्कृतिक प्रतिरोध को सशक्त बनाना होगा ।“
*इस अवसर पर ‘ हिरावल ‘ के कलाकारों ने मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता “ अन्धेरे में “ एक अंश “ ओ मेरे आदर्शवादी मन / ओ मेरे सिद्धांतवादी मन /अब तक क्या किया जीवन क्या जिया “ का गायन प्रस्तुत किया।
* शरद कोकास ने प्रलेस के महासचिव प्रो कमलाप्रसाद व कवि नासिर अहमद सिकन्दर ने जलेस के महासचिव चन्चल चौहान का सन्देश पढ़ा । कवि आलोक धन्वा का सन्देश भी पढ़ा गया ।
*इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध क्रान्तिकारी कवि नवारुण भट्टाचार्य , झारखंड के प्रसिद्ध विद्वान बी पी केशरी , आलोचक रविभूषण , जसम उत्तर प्रदेश के राज्य अध्यक्ष प्रो राजेन्द्र कुमार , जसम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामजी राय , चित्रकार अशोक भौमिक , प्रलेस भिलाई के रवि श्रीवास्तव , जलेस के नासिर अहमद सिकन्दर ने भी अपने उद्बोधन प्रस्तुत किये ।
* उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध आलोचक प्रो मैनेजर पाण्डेय ने की ।
* इस अवसर पर कवि केदारनाथ अग्रवाल ,बाबा नागर्जुन , शमशेर , अज्ञेय तथा फ़ैज़ के चित्रों व कविता पोस्टर्स की प्रदर्शन बनारस कला कम्यून तथा भिलाई के हरि सेन , अनिल कामड़े द्वारा किया गया ।
* चित्रकार अशोक भौमिक ने भारतीय चित्रकला के अनुपम उदाहरणों को स्क्रीन पर प्रस्तुत करते हुए भारतीय चित्रकला के जनपक्ष पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया ।
आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें
लगता है मैंने फिर एक अच्छा आयोजन मिस कर दिया. क्या किया जाये इस रोजी रोटी का, यहाँ कल ही १४th मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाट्य समारोह शुरू हुआ, उसमें भी अशोक मिश्र जी को सुनने का मौका मिस कर गया शहर में रहकर भी.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई साहब, आपकी रपट से कुछ तो बांचने का मौका मिला.
@ संजीत , चिंता न करो मंगलेश जी ने वादा किया है उनका पूरा व्याख्यान वे भेज देंगे ब्लॉग के लिये
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंwah wah, ye to badi acchi baat bataiye bhaiya aapne. pratiksha karta hu fir to....
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