पिछले दिनों मुम्बई गया था । मुम्बई सेंट्रल रेल्वे स्टेशन से बाहर निकलते ही फुटपाथ पर यह दृश्य देखा । मैं भीख माँगती हुई एक बच्ची का चित्र लेना चाहता था लेकिन यह संयोग ही था कि इस दृश्य में अन्य दो स्त्रियाँ अनायास ही आ गईं । इसे कैमरे में उतारते वक़्त मेरे हाथ पहली बार काँपे ...इतनी असमानता ? इतना वर्गभेद ? कैसी विवशता है यह ? इस देश में जहाँ ग़रीबी इतना बड़ा अभिशाप है क्यों वहाँ अपने स्टेटस को लेकर ,अपने धर्म को लेकर आपस में वैमनस्य पालते है हम लोग ? बार बार पूछता रहा मै अपने आप से यह सवाल ..क्या इस देश में जन्म लेकर कोई अपराध किया है मैने ? इस चित्र को प्रकाशित करते हुए , इस " आधी दुनिया " से सचमुच क्षमा चाहता हूँ मैं ........................- क्षमाप्रार्थी - शरद कोकास
आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें
काश! इस सवाल का कोई जबाब होता!!
जवाब देंहटाएंये खाई कब भरेगी?
जवाब देंहटाएंसही कहा ........
जवाब देंहटाएंओह , बहुत सही सवाल किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंBahut dukhad hai ye sab.. dil itni baar dukhta hai aisi baaten roj sunkar ki hisab nahin ho pata..
जवाब देंहटाएंऎसे कुछ सवाल अनुतरित रहने के लिए ही जन्म लेते है.....
जवाब देंहटाएंSharad ji........aap ne jo likha hai wo Bombay tak hi simit nahi...balki pure Bharat main yeh rog phail chuka hai.
जवाब देंहटाएंवो सुबह कभी तो आएगी...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
शरद भाई
जवाब देंहटाएंयह फोटो नहीं पूरा उपन्यास है। या मेरे परवरदिगार तू कहां छिपा बैठा है।
राजकुमार सोनी
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जवाब देंहटाएंबेहद दुखद है जमीन आसमान का फर्क है .....
जवाब देंहटाएंregards
आपने जन्म लेकर कोई अपराध नहीं किया है आप का जन्म इसलिए ही हुआ है कि आप असमानता ,वर्गभेद ,मिटाने में कुछ मदद कर सकें |यह सही है कि "नहीं दरिद्र सम पातक पुंजा " यह अभिशाप न जाने कब से चला आरहा है और कह नहीं सकते कब तक चलेगा | आप जैसा सम्बेदनशील व्यक्ति इस द्रश्य से कितना आहत हुआ होगा ,मै इसकी कल्पना कर सकता हूँ मगर ,इसका कोइ उपचार भी नहीं नजर आता
जवाब देंहटाएंशायद ये खाई कभी नही भरेगी। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशरद भाई यह लोग मेहनत कर के , मजदुरी कर के भी तो पेट भर सकते है? एक जरुरत मंद, एक गरीब की मदद करनी अच्छी बात है, लेकिन जो हाथ पांव सही सलामत होने के वाबजुद लोग भीख मांगे तो कया यह उचित है??
जवाब देंहटाएंHam apni orse kuchh kar sakte hain wo karen...aur kya kahun?
जवाब देंहटाएंek aah!! ke saath foto ke liye wah bhee !
जवाब देंहटाएंIs chitra ne man me ek tis bhar di ....waakai itani asamanta sochane ka vishay hai !!
जवाब देंहटाएंKaash sabhi log aapki tarah soch pate...
सुनता आया हूं एक चित्र हज़ार शब्दों के बराबर होता है,आज देख भी लिया।कहने को बहुत कुछ है मगर शब्द नही मिल रहे हैं,स्तब्ध हूं।
जवाब देंहटाएंलोग असमानता की बातें करते हैं, लगातार बहस करते हैं, लेकिन वे असर नहीं छोडतीं....आपके एक चित्र ने हिला दिया....
जवाब देंहटाएंकुछ कमेंट कर पाने की हिम्मत ही नहीं है !!
जवाब देंहटाएंबच्चियों को लेकर समाज में अभी भी वर्गभेद है.
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