11 जून 2021

2.राष्ट्र के भीतर महाराष्ट्र




चलिए प्रयास करता हूँ कि अपने बचपन की बातों के बहाने तत्कालीन मध्यभारत की राजनैतिक और सामाजिक स्थितियों पर कुछ बातें कह सकूँ वैसे भी सिर्फ मेरी कहानी में आपकी क्या रूचि हो सकती है आप लोगों में कई लोग सकारात्मक ढंग से यह अवश्य सोच रहे होंगे कि अगर इस बहाने कुछ ज्ञानप्राप्ति हो जाए तब ही इसे पढने में कुछ लाभ है चलिए आपकी यह इच्छा पूर्ण करने का प्रयास करता हूँ

 

कृष्ण चंदर ने अपने एक उपन्यास की शुरुआत करते हुए लिखा था कि जिस देश में दस के एक मामूली से नोट पर सत्रह भाषाओं में ‘दस रूपया’ लिखा होता है वहाँ  एकता कैसे हो सकती है आज़ादी के समय भारत में यही स्थिति थी कि बहुत कम राज्यों का निर्माण हुआ था बहुत सारी रियासतें और राजवंश अपनी सत्ता के मद में मग्न थे आज़ादी प्राप्त होने के तुरंत बाद  भी भारत में कमोबेश यही स्थिति थी यहाँ कोई संगठित राजनैतिक सत्ता नहीं थी । यह अनेक रियासतों का एक संघ था । यहाँ सामाजिक व्यवहार,रहन सहन, खानपान ,संस्कृति आदि में विभिन्नताएँ तो थी हीं लेकिन एक संगठित सर्वमान्य सत्ता का भी अभाव था ।

 मध्यभारत देश का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था सन अठारह सौ इकसठ से इस क्षेत्र को सेंट्रल प्रोविंस या मध्य प्रान्त कहा जाने लगा था सन उन्नीस सौ तीन में इसमें बरार के चार ज़िले और शामिल किये गए तथा यह सी पी एण्ड बेरार कहलाने लगा आज़ादी के बाद सन उन्नीस सौ पचास में यह क्षेत्र मध्यप्रदेश कहलाने लगा सी पी एंड बेरार में महाकोशल और बुंदेलखंड का क्षेत्र भी शामिल था इसकी राजधानी नागपुर थी और पंडित रविशंकर शुक्ल यहाँ के मुख्यमंत्री थे उस समय यहाँ कुशल राजनीतिज्ञ थे जो राजनीतिक चेतना से लैस थे

 

भारतीय गणराज्य के अस्तित्व में आने के बाद से ही उन्नीस सौ त्रेपन में जस्टिस फज़ल अली की अध्यक्षता में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा भाषावार राज्यों के गठन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई थी यद्यपि उनका कहना था कि देश की मिली जुली संस्कृति और भौगोलिकता को देखते हुए भाषा एवं संस्कृति के आधार पर राज्यों का गठन बहुत कठिन कार्य है ।

लेकिन उन्हें दायित्व ही यह सौंपा गया था फलस्वरूप इसी क्रम में एक नवम्बर उन्नीस सौ छप्पन को मध्यप्रांत की अनेक रियासतों को मिलाकर नये मध्यप्रदेश का गठन किया गया ।  इसमें मध्यभारत और विंध्यप्रदेश को भी शामिल किया गया उस समय महाराष्ट्र का गठन नहीं हुआ था और महाराष्ट्र का अधिकांश क्षेत्र बॉम्बे प्रेसिडेंसी या मुंबई राज्य के अंतर्गत आता था मध्यप्रदेश के दक्षिण में स्थित भंडारा के अलावा नागपुर, अकोला अमरावती, वर्धा, चंद्रपुर बुलढाना और अमरावती इन आठ ज़िलों को भौगोलिकता के आधार पर विदर्भ कहा जाता था राज्य गठन आयोग द्वारा यह सिफारिश भी की गई थी कि विदर्भ के आठ जिलों को मध्यप्रदेश और मुंबई प्रान्त से अलग कर पृथक राज्य बनाया जाए लेकिन उस अनुशंसा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया राज्यों के गठन के दौरान राजनैतिक सत्ता सदैव से राज्य के निवासियों की उपेक्षा करती आई है । आज भी निवासियों से उनकी इच्छा पूछी नहीं जाती और उन पर अपनी इच्छा लाद दी जाती है यद्यपि उनका दावा होता है कि ऐसा वे आम जन के हित में कर रहे हैं ।

 इन्हीं नीतियों फलस्वरूप एक मई उन्नीस सौ साठ को महाराष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ और विदर्भ के आठ जिलों सहित भंडारा भी महाराष्ट्र में शामिल हो गया । यहाँ राजकाज की भाषा मराठी निर्धारित की गई । यद्यपि भाषा और संस्कृति में यह क्षेत्र हिन्दी प्रदेश के बहुत करीब था । लेकिन इसके दूरगामी परिणामों से राज्यसत्ता नावाकिफ थी । उन्हें यह सत्य ज्ञात नहीं था कि मराठी का जातिगत अभिमान पालने वाले लोग इन्हें पूर्णत: कभी स्वीकार नहीं करेंगे


शरद कोकास 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आइये पड़ोस को अपना विश्व बनायें