10 जून 2021

0.हम अपना बचपन क्यों याद करते हैं


मेरे एक मित्र अक्सर अपने बचपन के किस्से सुनाया करते
जिनमे कभी खुशियाँ होतीं थीं कभी दुःख
उनकी शुरुआत कुछ इस तरह से होती थी  “बचपन में जब मैं छोटा था तब ऐसा हुआ कि ...” इस पर हम लोग जोर से हँसते और उन्हें टोकते हुए कहते “ भैया बचपन में तो सब छोटे ही होते हैं ..आप थे तो इसमें कौनसी बड़ी बात है ?” वे हमारी बात को अनसुना कर देते और गंभीरता से कहते “ देखो, जब भी किसी के बचपन की बातें सुनो ध्यान से सुनो, हो सकता है उसमे कोई ऐसी बात हो जिसे सुनकर हमारे जीवन में परिवर्तन आ जाए और हमारा न केवल आज बल्कि कल भी सुधर जाए, और खुद के बचपन को तो हमेशा याद करना चाहिए इसलिए कि हमारी आज की बहुत सारी समस्याओं की जड़ें बचपन में ही होती है।“

 मनोविज्ञान और सम्मोहन के विषय में पढ़ते हुए मुझे इसका अहसास हुआ कि वे मित्र एक मनोवैज्ञानिक की भांति कितनी  गंभीर बात कहते थे वस्तुतः हमारे मस्तिष्क का प्रारंभिक प्रशिक्षण द्वारा हमारे बचपन में ही सम्पन्न होता है
बचपन में ही यह निश्चित हो जाता है कि भविष्य में हमारे व्यक्तित्व का निर्माण किस तरह होगा, हमारा स्वभाव किस प्रकार का होगा और हम किस तरह के मनुष्य बनेंगे

यह बात आपको अजीब लगेगी लेकिन यह तय है कि हमारे जीवन में जो कुछ भी नकारात्मक है उसे सकारात्मकता में परिवर्तित करने हेतु  हमें बचपन की स्मृतियों में जाना आवश्यक होता है जैसे हर व्यक्ति के जीवन में मृत्युभय एक सामान्य बात है हम मृत्यु से डरते हैं लेकिन हम यह कभी नहीं जान पाते कि उनका मूल हमारे बचपन की किसी घटना में निहित है , संभव है जिसे हम भूल गए हों   इसके अलावा बचपन में ऐसे अनेक भयप्रद प्रसंग या ट्रॉमेटिक एक्सपीरियंस होते हैं जिनके कारण हम जीवन भर किसी वस्तु से, किसी बात से, किसी व्यक्ति से अथवा किसी विचार से डरते रहते हैं

इन सब नकारात्मक बातों को अवचेतन में स्थित  बचपन की अपनी स्मृतियों में जाकर ही दूर किया जा सकता है। कभी कभी हम स्वयं ही अपने बचपन की स्मृतियों में नहीं पहुँच पाते लेकिन अन्य किसी के बचपन के बारे में पढ़ते या सुनते हुए हमें अचानक अपने बचपन की अनेक घटनाएँ याद आ जाती है और फिर हम उस आधार पर स्वयं के व्यक्तित्व और जीवन में सुधार ला सकते हैं

मुझे हमारे मित्र की यह बात अच्छी लगती थी कि वे अपने बचपन के किस्से कुछ इस तरह सुनाते थे जैसे अभी कल ही सब कुछ घटित हुआ हो उनकी तरह मुझे भी अपने बचपन को याद करना अच्छा लगता है शायद आप सभी को लगता हो यह बात और है कि इस स्मृति में सुख अधिक शामिल है या दुःख यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने वर्तमान की तुलना हमेशा अतीत से करता है इसी स्मृति भाव से गुजरते हुए एक दिन यह विचार मन में आया कि क्यों न अपने बचपन की एक एक घटना को लिख लिया जाए

अपने बचपन को याद करते हुए जब मैंने लिखना प्रारम्भ किया तो अनेक प्रश्न मेरे मानस में मंडराने लगे । क्या यह स्मरण वस्तुत: अतीत के प्रति सम्मोहन है या व्यतीत किये हुए जीवन  को फिर से जीने की व्यर्थ या अपूर्ण रहने वाली इच्छा ? क्या यह अतीत के अपने व्यक्तित्व को लेकर  आत्ममुग्धता है या विगत के आधार पर वर्तमान की समीक्षा ? क्या यह स्मृतियों का पुनरावलोकन है या बढ़ती हुई उम्र में अपनी स्मरणशक्ति की परीक्षा ?  अतीत को याद करना और फिर उसे अन्य लोगों के समक्ष वर्तमान में प्रस्तुत करना क्या अपने अतीत के गौरव का बखान करना है या अपने प्रति उपजने वाली आत्मदया ?

शरद कोकास 

2 टिप्‍पणियां:

  1. हमें तो खूब अच्छा लगता है अपने बचपन में घूमना।

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  2. इस कलम को , इस प्रवाह को , बचपन की यादों को बहने दें यूँ ही। मुददतों बाद कुछ रूहानी पढ़ने का आनंद आ रहा है शरद भाई। लिखिए खूब लिखिए इसे

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