6 जनवरी 2011

अगर मेरा नाम शरद विश्वकर्मा होता तो..

विगत दिनों नागपुर जाना हुआ था , छोटी बहन की ननद की बेटी के विवाह में । विवाह समारोह दिन में सम्पन्न हुआ । मंत्र पढ़े गये और  ‘कुर्यात सदा मंगलम...’ की ध्वनि के साथ ममता रिधोरकर व सारंग पेंढारकर एक दूजे के साथ परिणय सूत्र में आबद्ध हो गये । तत्पश्चात भोजन सम्पन्न हुआ , पारम्परिक पकवानों के अलावा बेसन का झुनका और ज्वार की रोटी यानि भाकर भी जम कर खाई गई । भोजनोपरांत वैदिक विवाह पद्धति से भी विवाह सम्पन्न हुआ । कुछ देर पश्चात वर - वधू हाथ में शक्कर से भरी हुई एक कटोरी लेकर आये और सारंग ने चम्मच से शक्कर देते हुए कहा “ मुँह मीठा कीजिये , आज से इसका नाम शमिका हो गया है ।“ मुझे याद आया महाराष्ट्रियन ब्राह्मणों में विवाह के उपरांत एक रस्म होती है जिसमें वधू का मायके का प्रथम नाम बदल दिया जाता है और उसे दूसरा नाम दिया जाता है  । इसके लिये पंडित द्वारा वधू को तीन विकल्प दिये जाते हैं । उसे अपनी पसन्द का एक नाम चुनना होता है ।
चित्रा व राजेन्द्र
मैं शक्कर फाँकते हुए कुछ सोच ही रहा था कि मेरे फुफेरे भाई राजेन्द्र शर्मा की पत्नी चित्रा ने मुझसे सवाल किया “ भैया , क्या यह गलत प्रथा नहीं है कि मायके का दिया हुआ नाम ससुराल में बदल दिया जाए ? “ मैंने कहा “ हाँ गलत तो है , यह स्त्री के अस्तित्व व अस्मिता का सवाल है । मेरे विचार से नाम क्या सर्नेम भी नहीं बदलना चाहिये । “ “ तो फिर आपने भाभी का सर्नेम क्यों बदला ? “ उसने तपाक से सवाल किया ।

शरद विश्वकर्मा ( कोकास ) व लता कोकास 
“ हा हा हा ...” मैं ज़ोरों से हँसा । “ भई , मैं तो उपनाम बदलने के पक्ष में ही नहीं था । विवाह के पश्चात दो वर्षों तक इनका नाम लता विश्वकर्मा ही था । लेकिन होता यह था कि जब भी मैं इनके स्कूल जाता था तो मेरा स्वागत आइये विश्वकर्मा जी कह कर किया जाता । उधर मेरे दोस्तों के बीच इन्हे श्रीमती कोकास कह कर सम्बोधित किया जाता । इस तरह अपनी पहचान को लेकर कई बार विचित्र स्थितियाँ उत्पन्न हो जातीं थीं । अब इस तरह के परम्परावादी समाज में हम दोनों दो - दो नामों के साथ तो नहीं रह सकते थे ना , इसलिये तय किया गया कि एक को तो नाम बदलना ही होगा । अंतत: इनका उपनाम बदल दिया गया ।“
“ वही तो ।“ चित्रा ने फिर सवाल किया । तो भाभीजी ने ही अपना नाम क्यों बदला आपने क्यों नहीं ? “ मैंने कहा .. “ भई, अगर कुछ हज़ार वर्षों पूर्व की मातृसत्तात्मक परिवार की स्थिति होती तो अवश्य ही मैं अपना नाम बदल लेता लेकिन क्या करें हमारे यहाँ पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था है । नाम बदलने से पहले व्यवस्था बदलना ज़रूरी है , और वह इतनी जल्दी तो हो नहीं सकता । “
लेकिन प्रश्न जहाँ का तहाँ है , आखिर स्त्री नाम क्यों बदले ? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वह अपने पूर्व नाम और उपनाम के साथ ही अपना अस्तित्व बनाये रखे । वैसे यह सम्भव तो है ,मैंने बहुत सी विदूषी महिलाओं को देखा है जिन्होंने विवाह के उपरांत भी अपने उपनाम नहीं बदले इसलिये कि उनकी पहचान ही पहले के नाम के साथ जुड़ी थी । लेकिन इस तरह होता यह है कि व्यावसायिक क्षेत्र में तो उनका पूर्व नाम ही प्रचलित होता है और सामाजिक क्षेत्र में पति का उपनाम जुड़ जाता है । इस तरह उन्हें दो नामों के साथ जीना पड़ता है । हमारी एक रंगकर्मी व लेखिका मित्र हैं ऊषा वैरागकर , रंगकर्मी श्री अजय आठले से विवाह के पश्चात उन्होंने अपना नाम ऊषा वैरागकर आठले लिखना प्रारम्भ किया और अब वे पूरी तरह ऊषा आठले हो गई हैं । लेकिन पुराने लोग अभी भी उन्हें पुराने नाम से ही जानते हैं । और अपने पूर्व नाम को लेकर संकल्पित हमारी ब्लॉगर मित्र वन्दना अवस्थी दुबे से तो आप परिचित हैं ही ।  
सारंग पेंढारकर व शमिका ( ममता ) पेंढारकर 
                         फिर भी इसका तात्कालिक उपाय तो यही है कि प्रथम नाम तो कम से कम न बदला जाये , लेकिन प्रथायें तो प्रथायें है और हम इनका विरोध भी करते हैं लेकिन जानते हैं व्यावहारिक जगत में इनका हल ढूँढना इतना आसान नहीं है  । इसके लिये नई सोच के युवाओं को ही आगे आना होगा ।  बहरहाल कु. ममता रिधोरकर अब सौभाग्यवती शमिका पेंढारकर हो गई हैं । श्री सारंग पेंढारकर का नाम वही है जो पहले था । उनके नाम के आगे महाराष्ट्र की परम्परा के अनुसार सौ. भी नहीं जोड़ा जा सकता क्योंकि वे पुरुष हैं , हाँलाकि इतनी अच्छी लड़की से विवाह कर सौभाग्यवान तो वे हो ही चुके हैं । फिलहाल इस चर्चा के बहाने हम , दोनों को अपनी शुभकामनायें और बधाई दें और उनके सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करें । 
 
    
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22 टिप्‍पणियां:

  1. हमारी ओर से भी दोनों को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

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  2. जो भ हो जैसे भी हो जीजू हो
    सादर चरण स्पर्श
    आपका साला
    बाद में पंडित गिरीश बिल्लोरे
    नहीं
    बस पूज्य का स्नेही

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  3. दोनों को अपनी शुभकामनायें और बधाई और उनके सुखद वैवाहिक जीवन की कामना.
    जीवन तो निश्चय ही सुखद होगा. यदि एक का अस्तित्व मिटाकर दूसरे का बड़ा सा बना दिया जाए और मिटने वाले को जन्म से सिखाया गया हो कि मिटना ही सौभाग्य है तो आनंद ही आनंद रहेगा जीवन में.
    घुघूती बासूती

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  4. व्यस्क हो जाने के बाद बिलकुल ही नए नाम से पुकारा जाना बहुत ही त्रासदायक है. महाराष्ट्र में ऐसी प्रथा है....पर अब बदलाव आ रहे हैं और लड़कियों को ही इसका विरोध करना चाहिए. मुझे नहीं लगता उनके इनकार करने पर कोई नाम बदलने के लिए जोर डालेगा.

    नए वर-वधु को ढेरो बधाई और शुभकामनाएं.

    सारी तस्वीरें बहुत ही सुन्दर हैं...खासकर शर्मीली सी लता जी की जो...कैमरे की तरफ देख ही नहीं रहीं...निराश ना हों... आप भी ठीक ही लग रहे हैं...अब लता जी के साथ जो हैं...:)

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  5. पोस्ट बहुत अच्छी है विश्वकर्मा जी । अच्छा हुआ कि आपने सरनेम बद्ल दिया मम्मी का वरना मै बेचारी दो सरनेम के बीच मे ही रह जाती । कोकास और विश्वकर्मा ।तब मेरा नाम होता कोपल विश्वकर्मा । अपने नाम के साथ यदि विश्वकर्मा लगा होता तो कितना मजा आता ना । डाख, हमारा पता, बैक के काम , और भी कई सारी चीजो में अपने नाम के साथ विश्वकर्मा सरनेम लगा होता । सबकी फोटोग्राफस भी बहुत अच्छी है ।

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  6. वेसे मेरे ख्याल से विवाह के बाद एक लड्की का नाम नही बदलना चाहिए। अगर बदलना है तो फिर लड्के को भी अपना नाम बदलना चाहिए । माँ पिता ने इतना प्यार से नाम दिया तो फिर इस नाम को बद्लने की ज़ुरत क्या है सरनेम तक ठीक है पर नाम क्यों । एक नाम लड्की की हर चीज से जुडा होता है चाहे वो स्कूल् ,नौकरी ,समाज में, घर परिवार ससुराल मायका या कोई भी क्षॆत्र हो । पहचान तो नाम से ही बनती है । मे तो बहुत खिलाफ हूँ इस नाम बदलने की प्रथा के ।

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  7. वैसे आप कर्म तो विश्‍व भर के ही करते हैं
    शरद भाई
    आजकल सब जगह आपका ही प्रताप है
    शरद शरद शरद

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  8. कहा गया है नाम मे क्या रखा है . लेकिन नाम एक पहचान है उसका बदलना एक अन्याय है .
    भाकरी की याद दिला दी आपने बहुत बहुत साल पहले पूणे के सिंहगण मे हमने भाकरी खाई थी एक घर में आज भी स्वाद याद है

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  9. नाम बदले की ये प्रथा मुझे भी अच्छी नहीं लगती है | रही बात प्रथा की तो प्रथा हमी ने बनाई है समय के साथ उसमे बदलाव हमी लायेंगे | अब तो महिलाए अपना सरनेम भी नहीं त्यागती है और अपने नाम के आगे दो सरनेम लगाती है बुरा भी नहीं लगता |

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  10. ये क्या? अभी अभी पोस्ट पढनी शुरु की, और खत्म हो गई :( शादी के और किस्से भी पढने का मन है. हर प्रांत के अलग-अलग रीति-रिवाज़ होते हैं, आप लिखेंगे, तो हम सबको लाभ होगा न?
    नाम और सरनेम , दोनों ही बदलना कष्टकर है. लता जी की तस्वीर देख के भी जी नहीं भरा. और आप तो अमोल पालेकर लग रहे हैं:) ममता तो बड़ी प्यारी है. और लिखिये अभी.

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  11. दोनों को शुभकामनायें और बधाई और उनके सुखद वैवाहिक जीवन की कामना.
    नाम हो या उपनाम दोनों ही बदलना गलत है मेरे हिसाब से.पर प्रथा है,और वो भी हमने ही बनाई है तो तोड़ भी हम ही सकते हैं.

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  12. सुंदर प्रस्तुति.... नव विवाहितों को हार्दिक शुभकामनाएं. ..

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  13. Didi ka naam badalne par mai bhi is vichaar mei thi k itne pyaar se itna dhundh k naam rakha gaya hai mera...use badalna pade to atyant bura lagega mujhe...isliye aage chal ke meri pehli shart hi ye hogi k mera naam na badla jaaye...apne naam se bohot pyaar hai mujhe....

    bohot achcha post hai mama :)

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  14. ममता शमिका और सारंग को दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने पर बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं।

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  15. हुम्म्म्म... अब समझ में आया कि देवदास जैसी कोई प्रेमकथा महाराष्ट्र में क्यों नहीं बन पाई.. अजी शादी के बाद वहाँ का देवदास गली-२ पारो का पता पूछ रहा होगा लेकिन शादी के पहले की पारो को तो लोग बदले हुए नाम से जानने लगे होंगे, बताता कौन भला???? :P
    संभव है ये प्रथा पुराने प्रेमियों या अविवाहित लड़कियों के पीछे पड़े सड़क-छाप मजनुओं से छुटकारा पाने के लिए ही चली हो. खैर हमें क्या, हम थोड़े कोई किसी का नाम बदलने जा रहे हैं.. :P
    नवदंपत्ति को बहुत-बहुत शुभकामनाएं..

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  16. मैं इस ब्लॉग पर आकर अविभूत हूँ. अच्छा लगा. प्रथा हमी ने बनाई है समय के साथ उसमे बदलाव हमी को लाना होगा !
    सुंदर प्रस्तुति....
    कृपया मेरे ब्ळोग पर पधारें. नव विवाहितों को हार्दिक शुभकामनाएं. ..

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  17. yah baat bilkul sahi hai ke ladkiyonka naam nahi badalna chahiye.ma bap ka rakha hua naam hi hamari pahchanhai.Hum seema kokas gondnale nam se jane jate hai.

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  18. aap sabhi ko dhanyad आप सभी का धन्यवाद

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