भंडारा मे बचपन की तीज
भंडारा में मेरे बचपन में तीज या हरतालिका भी कुछ अलग ढंग से मनाई जाती थी । पोला पर्व अमावस्या को आता है उसके तीन दिन बाद यह तीज मनाई जाती है । शिव की प्राप्ति के लिये पार्वती द्वारा किये गए व्रत की स्मृति में मनाए जाने वाले इस पर्व के लिये हम घर के सभी लोग अपनी अपनी तरह से इसमें शामिल होते थे । हमारे घर में प्लास्टर ऑफ पेरिस की शिव-पार्वती की एक प्रतिमा थी । मुझे याद है बाबूजी बरामदे के एक कोने में उस प्रतिमा की स्थापना करते थे । एक बड़ी सी सेन्टर टेबल उसके ऊपर एक छोटी टेबल रखी जाती थी उस पर एक कपड़ा डाला जाता था इस तरह की टेबल न दिखाई दे । फिर उस पर शिवपार्वती की वह प्रतिमा रखी जाती थी ।प्रतिमा के ऊपर बाबूजी एक लाइट लगाते थे । वह लाइट भी कुछ स्पेशल थी ।एक टिन के गोल डिब्बे में ढक्कन की जगह एक लाल रंग का काँच लगा था । यह वह काँच था जिसे रेल्वे में सिग्नल के लिए इस्तेमाल किया जाता था , यह उन्हे कहीं कबाड़ में मिल गया था ड़िब्बे की तली में एक छेद कर उसमें बल्ब लगाने की व्यवस्था थी । उस लैम्प से गाढ़े रंग की लाल रोशनी निकलती थी और मूर्ति से होती हुई पूरे कमरे में फैल जाती थी ।
विभिन्न प्रकार के पौधों की पत्तियों और फूलों से सजावट के अलावा नीचे वाली टेबल पर गेहूँ के जवारे रखे जाते थे जिन्हे माँ भुजलिया कहा करती थी । पूजा के लिये हम बच्चे बेल पत्ती ,दुर्वा और फूल बटोरकर लाते थे । तीज के दिन माँ दिन और रात का निर्जला उपवास रखती थी और दो तीन घन्टे के अन्तराल पर पूजा करती थी । पूजा के लिए आसपास की महिलाएँ भी आती थीं और इस सजावट की प्रशन्सा करती थीं । रात के समय पड़ोस से पंडित लक्ष्मण प्रसाद शुक्ल आते थे और हरतालिका के वृत की कथा सुनाते थे ।
यह कथा सुनना हम लोगों के लिये किसी मनोरंजन कार्यक्रम से कम नहीं होता था । इस कथा के द्वारा ही मैने जाना कि ब्राह्मणों द्वारा किस तरह भय दिखाकर सामान्य जनता पर अपना वर्चस्व कायम किया गया ।पंडित जी बताते थे कि जो स्त्री इस व्रत को ठीक ढंग से नहीं करेगी वह अगले जन्म में पशु योनि में पैदा होगी उदाहरणार्थ जो स्त्री व्रत के दौरान जल ग्रहण करेगी वह अगले जन्म में मछली या मगरमच्छ बनेगी , फल खाने वाली स्त्री बंदरिया बनेगी, मीठा खाने वाली चींटी या मक्खी बनेगी या माँस भक्षण करने वाली स्त्री शेरनी बनेगी आदि आदि । इसके अलावा रात में सो जाने वाली, और जाने क्या क्या करने वाली स्त्रियों के लिये भी बहुत सी भयावह बातें वे बताते थे ।
बाबूजी पुनर्जन्म जैसी अवधारणाओं में विश्वास नहीं रखते थे लेकिन इन सब बातों का बहुत आनंद लिया करते थे । हम लोग भी पंडित जी से सवाल करते थे कि यह तो कहीं नहीं लिखा है कि समोसा,कचोड़ी,जलेबी आदि खाने वाली स्त्री क्या बनेगी तो यह सब उपवास में खाया जा सकता है क्या ? वे हमें उसी तरह डाँटकर चुप करा देते थे जिस तरह पूर्व में ईश्वर और धर्म का भय दिखाकर सामान्य मनुष्य को चुप करा दिया जाता था । बाबूजी माँ के निर्जला उपवास पर चिन्ता प्रकट करते और कहते “ तुम चाय पी लिया करो इसलिये कि कथा में इस बात का कहीं उल्लेख नहीं है कि चाय पीने वाली स्त्री क्या बनेगी ।“ माँ इस बात का प्रतिवाद करती कि चाय मे चीनी होती है सो चींटी तो बनना पड़ेगा । तब बाबूजी कहते “ तो बिना शक्कर की पिया करो ।“ तब वे कहतीं “ दूध तो फिर भी रहेगा और मुझे भैंस या गाय बनना पसन्द नहीं ।“ फिर बात पानी पर आ जाती और माँ को मछली बनना भी गवारा नहीं होता । वैसे बाद में माँ ने चाय पीनी शुरू कर दी थी और अंत में मधुमेह हो जाने के बाद से तो व्रत रखना भी बन्द कर दिया । पूजा वे फिर भी करती थीं और घर में शिव की स्थापना का कार्यक्रम बन्द हो जाने के बाद पड़ोस में जाकर पूजा कर लिया करती थीं ।
हरतालिका के व्रत के अगले दिन सुबह विसर्जन का कार्यक्रम होता था । सभी महिलायें समूह में खामतालाब पर जातीं और सब फल फूल , पूजन सामग्री व भुजलिया तालाब में विसर्जित कर देतीं । वह एक अद्भुत दृश्य होता था । घाट पर एक लाइन में बाँस के पड्डों पर रखे जवारे , बीचोबीच रेत का बना शिवलिन्ग और जलता हुआ दीपक । हरे हरे जवारों के बीच से झाँकती दीपक की लौ मुझे बहुत आकर्षक लगती थी । खामतालाब के इस घाट पर ही एक पुराना शिवमन्दिर है जिसे बहिरन्गेश्वर मन्दिर कहा जाता है । घाट पर पूजा के उपरांत स्त्रियाँ मन्दिर में पूजा करती थीं और फिर घर लौटकर उपवास तोड़ती थीं ।
इस पर्व के अगले दिन गणेश चतुर्थी से दस दिनो का गणेशोत्सव प्रारम्भ हो जाता था ।
( सभी चित्र गूगल से साभार )
बढ़िया जानकारी हमेशा की तरह .....आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी दी आप ने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत खूब वर्णन किया है तीज का. कल हम भी झांकी सजायेंगे, और रात्रि जागरण भी करेंगे. वैसे पार्वती ने शिव को पाने के लिये व्रत किया था, तो विवाहिताएं क्यों करती हैं इस व्रत को?
जवाब देंहटाएंbhaiya aapne to pura bachpan yaad dilaa diyaa.....
जवाब देंहटाएं@ vandana jee, jo karan karva chauth kaa hai vahi karan is haritaalika teej ka hai, bas ab aap samajh jaiye ki kyn rahti hain vivhahitayein is vrat ko
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2007/09/blog-post_11.html
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
@ वन्दना जी , विवाहितायें इस व्रत को इसलिये करती हैं कि उन्हे अगले जनम में भी यही पति मिले ( जैसा कि पन्डित जी ने बताया था ) और यह भी कि यह बस सात जन्म तक अलाउड है । अब किसी को पहले चेन्ज चाहिये तो अलग बात है हाहाहा…।
जवाब देंहटाएंग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ .वैसे भी आज पर्युषण पर्व का शुभारम्भ हुआ है ,इस नाते भी पिछले 365 दिनों में जाने-अनजाने में हुई किसी भूल या गलती से यदि आपकी भावना को ठेस पंहुचीं हो तो कृपा-पूर्वक क्षमा करने का कष्ट करेंगें .आभार
जवाब देंहटाएंक्षमा वीरस्य भूषणं .