2 अक्तूबर 2009

होता ज़रूर है एक और जन्म आपका

बरसों पहले 30 सितम्बर को एक देह ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया ,जिसके जन्मदाताओं ने उस का नाम रखा “शरद कोकास “ उस देह ने आगे चलकर जीवन को अर्थ देने के लिये बहुत सारे काम किये जिनमें एक काम कविता लिखना भी था । ढेर सारी कविताओं के साथ एक कविता और रची खुद पर यानि मनुष्य की देह पर ,इसलिये कि उसे अपना होना पर्याप्त नहीं लग रहा था ,इसलिये कि वह अपने जैसा एक मनुष्य रचकर ही संतुष्ट नहीं थी ,इसलिये कि वह देह अपना होना सार्थक करना चाहती थी । लेकिन इतना होना पर्याप्त नहीं था । उसे लगा कि इस देह की सार्थकता तभी है जब यह मनुष्यों के काम आये, जब यह औरों के सुख में सुखी रहने के अलावा उनके दुख में रोये, मुसीबतों में उनके लिये रास्ता तलाशे । अब तक तो उसे लगता था कि यह प्रकृति ही सब कुछ है और वह इस की ही देन है इसलिये उसे सिर्फ इस प्रकृति का शुक्रगुजार होना चाहिये ....
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वो ठंड से लरजती देह थी जिसे पहली दफा
सूर्य की रश्मियों ने दुलार की उष्मा दी होगी
और देह ने सूर्य के प्रति ज्ञापित की होगी कृतज्ञता
सूर्य की तपिश से झुलसती देह को फिर
राहत पहुँचाई होगी शीतल हवाओं ने
देह ने हवाओं का शुक्रिया अदा किया होगा
अपनी अगन में बारिश के संग नाची होगी फिर देह
बूँदों के संग उछली होगी उल्लास के आंगन में
और बरखा से कहा होगा मैं तुम्हारी आभारी हूँ |
(शरद कोकास की लम्बी कविता “देह “ से एक अंश )


                   उस देह के सारे भरम टूट गये जब उसने देखा कि यह प्रकृति मात्र उसके धन्यवाद की पात्र नहीं है । असली धन्यवाद तो उसे उस मनुष्य को देना है जिसने उसे इस प्रकृति के उपहारों के बीच जीने का सलीका सिखाया है । क्या होता अगर उसे जन्म देने के बाद उसके जन्मदाता यूँ ही उसे छोड़ देते ? क्या वह देह जीवित रह पाती ? शायद नहीं । इस प्रकृति के अलावा उसे जीवित रखने वाला यह समाज है जिसने उसे संस्कार दिये हैं ,जीने का अर्थ दिया है ।
                   मित्रों विगत 30 सितम्बर को मेरे जन्मदिन पर जब लगातार आप लोगों के बधाई सन्देश आ रहे थे मैं लगातार इस बात पर सोच रहा था । आप लोगों का स्नेह,आशीश ,और प्यार मुझ पर लगातार बरस रहा था । आप लोगों ने न कभी मुझे देखा न कभी मुझसे मिले ,न कभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मुझसे कुछ चाहा । मैं न कोई बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति हूँ ,न कोई राजनेता हूँ न ही ग्लैमर की दुनिया का कोई सितारा हूँ ,एक साधारण मनुष्य हूँ और अपने इस साधारणत्व में जीने के अर्थ खोज रहा हूँ । लेकिन आपका यह नि:स्वार्थ प्यार मुझे मनुष्य होने के नये अर्थ सिखा गया ।इसलिये धन्यवाद जैसा औपचारिक शब्द इस उपहार के लिये नाकाफी है ,फिर भी यह रस्म अदायगी कर रहा हूँ ।
                      बात बहुत गम्भीर हो गई ना?आप लोग सोच रहे होंगे कि शरद को यह क्या हो गया है .इतना सेंटीमेंटल ? चलिये ट्रैक चेंज करता हूँ और आप लोगों को अपने जन्म दिन मनाने की रनिंग कमेंट्री सुनाता हूँ ।वैसे तो यह सिलसिला माह भर से चल रहा था ,अशोक कुमार पाण्डेय ,अजित वडनेरकर जैसे मित्र पहले ही बधाई दे चुके थे ,श्वेता का ई-कार्ड आ चुका था ।जन्मदिन की शाम  मैने सोचा इस बार अपना जन्म दिन ऑनलाइन रहते हुए मनाया जाये सो 29 सितम्बर की रात 10 बजे से मैं कम्प्यूटरासन में बैठ गया । ठीक 11.30 पर वन्दना अवस्थी दुबे ने “टिंग” किया चैट बोक्स में “ सबसे पहले मेरी बधाई स्वीकार करें “ मैने ‘सच्चाई” के साथ इसे स्वीकार किया। जैसे ही 12 बजे पाबला जी ने मोबाइल बजाया “ बधाई हो शरद जी “ मैने कहा तो आपने बदला ले ही लिया । (मैने भी उनके जन्म दिन पर ठीक 12 बजे उन्हे फुनियाया था )
                      इधर अविनाश वाचस्पति जी चैट बॉक्स में इस तरह उपस्थित जैसे लेबर रूम के बाहर तैनात हों । खैर शीघ्र ही उनकी चिंता समाप्त हुई और उन्होने थोड़ी देर में ही लड्डू बाँटना शुरू कर दिया । और सुश्री तथा सर्वश्री समीर लाल,दिनेशराय द्विवेदी,कवि बोधिसत्व,राकेश सिंह,खुशदीप सहगल ,अनिल पुसदकर ,श्रीश पाठक प्रखर ,महफूज़ अली ,एम.वर्मा , वाणी गीत , अजित वडनेरकर, सुरेशचन्द्र शुक्ला, रज़िया राज ,सीमा गुप्ता ,मुरारी पारीक ,विनोद कुमार पांडेय ,सदा ,डॉ.रूपचन्द शास्त्री”मयंक” ,वन्दना,संजीव तिवारी , राजकुमार ग्वालानी , राज भाटिया ,पवन चन्दन , पी.सी.गोदियाल ,ज़ाकिर अली रजनीश उलूक ,विनय ,अमिताभ श्रीवास्तव ,शेफाली पाण्डे, श्रद्धा जैन ,प्रवीण शाह, राजीव तनेजा ,प्रिया , शशि सिंघल ,दिलीप कवठेकर ,ढोल की पोल , शमा और लावण्या शाह तक लड्डू का टोकरा भिजवाने का आश्वासन भेज दिया ।
                     लेकिन अपनी हरी बत्ती तो जल रही थी सो 12.05 पर कवि कुमार अम्बुज ने ,12.00 पर कवि बोधिसत्व ने , 12.43 पर अल्पना वर्मा ने ,12.45 पर अनुज महफूज़ अली ने , और 1.00 बजे जयप्रकाश मानस ने चैट बॉक्स में मुझे पकड़ लिया । रावेन्द्र कुमार रावि ने खूबसूरत ई-कार्ड भेजा और मिथिलेश दुबे ने खूबसूरत केक (स्वादिष्ट कैसे कहूँ चखना असम्भव था कोई देख लेता तो.. ) । तुलसी भाई पटेल और अपूर्व ने रात में ही मेल किया और इधर फेस बुक पर मेरे भांजे भांजियों रिद्धी ,परेश,भावेश,बॉनी वगैरह के अलावा प्रकाश राय जी ने भी बधाई दी ।
                     द्विवेदी जी ने एक बजे मुझे मेरे मनुष्य के रूप में जन्म लेने की सज़ा सुनाये जाने पर खुशी ज़ाहिर की । मुझे वो शेर याद आया “ फिर मेरी रूह को कैदे जिस्म मत देना ,बड़ी मुश्किल से काटी है सज़ा-ए-ज़िन्दगी मैने “ मैने सोचा इस शेर को चरितार्थ होने में तो अभी कई साल हैं और द्विवेदी जी जैसे काबिल लोग मेरा मुकदमा लड़ रहे हैं और आप लोगों की दुआयें जो मेरे साथ हैं तो क्या चिंता ।
                     इस तरह तीन बज गये ..हाँ एक बात लिखना तो भूल ही गया ठीक 12 बजे जब पाबला जी फोन पर दुआयें दिये जा रहे थे ,देखा मेरे कमरे के दरवाज़े पर श्रीमती लता कोकास खडी हैं और मुझे घूरे जा रही हैं । मैने पाबला जी से जब यह कहा (ऑफकोर्स धीमें स्वर में) तो वे बोले “ अभी भी घूरती हैं ! “ मैने कहा “ नहीं जी , यह वह घूरना नहीं है । । पाबला जी समझ गये और मुझे पिटने से बचाने के लिये उन्होने तुरंत फोन रख दिया ।
                    सुबह की शुरुआत हुई बिटिया कोपल की बधाई से । फिर फोन की घंटी घनघनाई कर्मनाशा वाले सिद्धेश्वर जी थे । 8 बजे साहित्यशिल्पी वाले राजीव रंजन का फोन आया । फिर कुछ मित्रों प्रमोद भोयर,डी,एन.शर्मा,अंसार अहमद का और कुछ रिश्तेदारों का ।मेरे बचपन के एक मित्र यवतमाल में हैं शरद भोयर जिनका जन्मदिन भी 30 सितम्बर है । उनकी बधाई पर मैं उन्हे धन्यवाद की जगह “सेम टू यू “कहता हूँ । आलोक जी का फोन नही आया वरना उन्हे भी यही कहता ।
                    इस बीच ब्रह्म मुहूर्त में पाबला जी अपने ब्लॉग “ हिन्दी ब्लॉगरों के जन्म दिन" पर घोषणा कर ही चुके थे “आज शरद कोकास और आलोक पुराणिक का जन्म दिन है” सो वहाँ जाकर उड़नतश्तरी,अविनाश वाचस्पति ,हिमांशु , दिनेश राय द्विवेदी ,ताउ रामपुरिया ,सीमा गुप्ता,श्रीश पाठक, अजय कुमार झा ,विवेक रस्तोगी ,रतन सिंह शेखावत ,सुलभ सतरंगी, गिरीश बिल्लोरे ,रंजना भाटिया , अनिल पुसदकर , अनूप शुक्ल ,देव ,हे प्रभु तेरा पथ ,संजीव तिवारी,साइंस ब्लॉगर असो.,प्रवीण शाह और प्रबल प्रताप सिंह से बधाई स्वीकार कर आ गया ।
                     इधर 8.45 पर अलबेला खत्री जी की ट्रेन थी जैसे तैसे एक हाथ से स्टीयरिंग सम्भाले और एक हाथ में मोबाइल पकड़े स्टेशन पहुंचा । ( यह बहुत रिस्की था । बाद में एक मित्र ने कहा “ क्यों भाई जन्मदिन और पुण्यतिथि एक ही दिन मनाने का शौक है क्या ?) हाँलाकि इसके बावज़ूद दो मिनट लेट हो गया और ट्रेन छूट गई । इसके बाद पार्टी हुई ( सुबह सुबह की इस दावते-जन्मदिन का रोचक विवरण पाबला जी अलग से देंगे ) । हाँ इस बीच रेस्तराँ में बैठे हुए अजय कुमार झा और द्विवेदी जी से बात चीत हुई ।
फिर दिन मज़े में बीता ।
                    जब भी कम्प्यूटरासन में बैठता कोई न कोई शुभाकान्क्षी दुआओं का गुलदस्ता लिये मौज़ूद रहता , अमरज्योति ,रंजना भाटिया ,विवेक रस्तोगी, अजय झा , इधर मेल बॉक्स में नेट लॉग पर ,फेस बुक पर , अविनाश , राजेश ,निर्मला कपिला ,विनोद पाण्डे, प्रेमचन्द गान्धी, सुलभ जायसवाल, राजीव माहेश्वरी, कीर्ति भट्ट, दीपक चौरसिया , पी.सी.गोदियाल , स्वप्निल भारतीय , कवि ओमा शर्मा ,भगवत रावत , गिरिजेश राव , शैलेष माहुले , राजेश्वर वशिष्ठ और भी कई कई मित्र , परिचित, रिश्तेदार ।
                     मै फिर गम्भीर हो गया हूँ । प्यार के इस अतिरेक से मेरे नेत्र सजल हैं । मैं संवेदनशील तो हूँ लेकिन इस समय सचमुच भावुक हो रहा हूँ और इस तरह भावुक होना मुझे अच्छा लग रहा है । मैं मन से आप सबके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए प्रस्तुत कर रहा हूँ , क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय भोपाल में मेरे गुरू रह चुके हिन्दी के वरिष्ठ कवि भगवत रावत की यह कविता

                   एक और जीवन


इसी जन्म में यदि कोई एक और जन्म हुआ हो आपका
तो यह दूसरा जन्म दिन किस तरह मनाते हैं आप
क्या आप भी करते हैं अधीरता से प्रतीक्षा किसी आवाज़ की
जो फुसफुसाती हुई चुपचाप से आपके कान में कहे
जन्मदिन मुबारक हो
तब भीतर ही भीतर कितनी खामोशी से
आप कैसे देते हैं उत्त
किसी से कुछ न कहें न किसी को कुछ बतायें
खुद को भी रहने दें अपने से बेखबर
पर सच तो यही है कि इस जन्म में कभी न कभी
होता ज़रूर है एक और जन्म आपका
और उसी के सहारे आप जीते हैं एक और जीवन
(भगवत रावत )

मुझे भी लगता है मेरा एक और जन्म हुआ है । आपका - शरद कोकास                                                      
आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें

24 टिप्‍पणियां:

  1. शरदजी,
    अपने लिए जिए तो क्या जिए,
    तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए...

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. आभार भी खासा शायराना है जी.....फिर से बधाई जन्मदिवस की.

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  4. आभार ज्ञापन का ये अंदाज पसंद आया, महाराज!!

    भगवत रावत जी की कविता के लिए आपका आभार.

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  5. कमाल है! सारा रिकोर्ड संभाल कर रखा है आप ने!
    यही तो है ब्लॉगजगत का सकारात्मक पहलू -: दुःख में सुख में सब साथ हैं.

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  6. इस जन्म में कभी न कभी
    होता ज़रूर है एक और जन्म आपका
    आपका जन्मदिन वृतांत इसी बात की पुष्टि कर रहा है ...हर जन्मदिन इसी तरह खुशनुमा बीते ...बहुत शुभकामनायें ..!!

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  7. लीजिये मेरी भी जन्म दिन की बधाई -किंचित विलंबित !
    और यह पुनर्जन्म वाली है !

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  8. सुन्दर पोस्ट्! फ़िर से मुबारक हो जन्मदिन!

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  9. देहधारी की रनिंग कमेंट्री बढ़िया रही
    एक बार पुन: बधाई

    बी एस पाबला

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  10. शरद जी, सबसे पहले तो क्षमायाचना कि मैं आपके जन्मदिन की बधाई समय पर नहीं दे पाया, आज याने कि बहुत देर से दे रहा हूँ।

    बहुत अच्छा लगा आपके जन्म दिन मनाने की रनिंग कमेंट्री पढ़कर! कितना अच्छा लगता है जब हम सब ब्लॉगर्स एक दूसरे के सुख-दुख में एक साथ रहते हैं।

    आपने लिखा है "बरसों पहले 30 सितम्बर को एक देह ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया" और मैं उसे इस प्रकार से कहना चाहता हूँ "बरसों पहले 30 सितम्बर को एक देह ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया जिसके अंतर में एक निर्मल और पवित्र आत्मा वास करती है"

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  11. देर से आने वालो मे मेरा नाम भी शामिल करे . पता नहीं क्यों याद था लेकिन भूल गया . जीवन का यह नया साल उमंगो से भरा हो . वैसे मनुष्य ही बने रहे यही कामना है

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  12. मैं भारतीय पुलिस की तरह हर ब्लॉग पर आखिर में पहुचता हूँ :) तो मेरी तरफ से भी जन्मदिन की बधाई स्वीकारें देर से ही सही.

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  13. बहुत सुंदर, बहुत सुंदर लिखा, ओर लेख पढ कर हमे तो मिठ्ठे लड्डुयो का स्वाद आ गया.
    धन्यवाद

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  14. Congratulations for your unique post.
    visit my blog 'Pearls of Thoughts'(http//:dradityakumar.blogspot.com)

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  15. वाह क्या बात है! अत्यन्त सुंदर लिखा है आपने! जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें!

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  16. मज़ा आ गया जन्म दिन का आंखों देखा और भोगा हाल सुन (पढ)के...

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  17. sharad ji

    namaskar

    mujhe maaf kare ki main deri se aapko janmdin ki badhai de raha hoon ..

    happy birthday to you ..
    god bless you .

    aap apni shaandar lekhni ke dwara aur apni shashkt rachnao ke dwara hum sabhi ka man jeetate rahe , yahi mangal kaamna hai ..

    kabi raipur aaunga to janmdin ki mithayi kha loonga ..

    regards
    vijay
    www.poemsofvijay.blogspot.com

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  18. मुझ से तो इतनी भावमय पोस्ट पढनी से रह ही गयी थी। ये ब्लागजगत का परिच्वार भी सच मे बहुत प्यारा है । मुझे लगता है संवेदनशील और कवि लोग इस परिवार मे बहुत हैं जो रिश्तों का महत्व जानते हैं। बहुत अच्छा लगता है। हम जैसे आकेले लोगों को लगता ही नहीं कि हम अकेले हैं । आपको व परिवार को दीपावली की शुभकामनायें

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  19. इस भावनात्मक पुनर्जन्म से कौन इनकार कर सकता है।
    धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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