5 अगस्त 2009

ब्लॉग पर इसे लिखते हुए रो रहा हूँ मै



4 अगस्त 2001 का वह दिन उस दिन रक्षाबन्धन का पर्व था भंडारा में मेरी माँ मृत्युशैया पर थी ,उसी शहर में रहने वाली छोटी बहन सीमा उनके पास अकेली थी किसी कारण वश मैं उनके पास नहीं पहुँच पाया ।उस दिन वे दोनो माँ-बेटी भी थीं और अपने भाईयों का इंतज़ार करती अकेली बहनें भी मैं चार रोज़ बाद घर पहुंचा माँ तब तक यह दुनिया छोकर जा चुकी थी रक्षाबन्धन के उस दिन दोनो माँ-बेटी इस पीड़ा को कैसे सहन करती रहीं, इस अकथ व्यथा को व्यक्त करती हुई बहन सीमा की यह कविता जो उसने कई दिनो बाद मुझे पत्र में लिख भेजी थी


ऐसा भी था एक रक्षाबन्धन


परम्परा के शब्दकोष में

रक्षाबन्धन पर्व है भाई बहन के प्यार का

परदेश गये भाई के ना आने पर

यह दिन होता था माँ के लिये

शहर में रहने वाली बेटी के इंतज़ार का


भाई की अनुपस्थिति में

माँ के हाथ में

रेशमी धागा बान्धते हुए कहा मैने

यह धागा तुम्हारी रक्षा करेगा माँ

मृत्युशैया पर लेटी हुई माँ की रक्षा की बात

निरर्थक जानते हुए भी माँ मै तुमसे कहती रही

तुमसे बिछड़ने की कल्पना का दुख सहती रही

तुमने अपने व मेरे भाई को याद किया

मुझसे कहा आओ तुम्हे ही राखी बांध दूँ

पता नहीं अगले रक्षाबन्धन तक....


इसके आगे तुम्हारी आवाज़

सिसकियों में डूब गई

जीवन से जितनी अपेक्षायें थीं तुम्हारी

सारी की सारी टूट गईं

मेरी विदाई के सत्रह साल बाद

पहली बार मुझसे लिपटकर रोईं तुम

बस इतनी सी बात कहने के लिये

कई रातों से नहीं सोईं तुम

कि मन नहीं है तुम्हे छोड़ कर जाने का

फिर बॉनी-बुलबुल को दुलार किया

कहा पढ़ना लिखना नाम कमाना

बाला को याद किया दुआएँ दीं

कहा जीवन में ढेरों खुशियाँ पाना


पिछले साल अस्पताल से लौटने पर

बेटी के घर रुकने का कर्ज़ था तुम्हारा

जो तुमने चुकाना चाहा

सारी उम्र कानों में पहना जिसे

वह कुंडल देकर

विवशता में जिसे स्वीकारा मैने

कैसे खुश रहती तुम्हे दुख देकर


'चलूँ' कहने पर बिलख कर रोईं तुम

मगर कह न सकीं फिर आना

तुम जानती थी शायद

मृत्यु ढूँढ रही थी तुम्हे ले जाने का बहाना


फिर गालों पर चुम्बन व प्यार दिया

आखरी बार अपनी बेटी को

जी भरकर प्यार किया


अपनी कोख जनी बेटी को

पराया मानने वाली इस संस्कृति में

मैं आज भी महसूस करती हूँ तुम्हारा स्पर्श

जो रक्षा करेगा मेरी आजीवन

जो सदा रहेगा जीवन का स्पन्दन

”ऐसा भी था एक रक्षाबन्धन”


सीमा किशोर गोडनाले

राममन्दिर वार्ड भंडारा (महा.)

21 टिप्‍पणियां:

  1. भावुक कर दिया.

    अति मार्मिक..

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  2. रूठ के हम से कही जब चले जाओगे तुम,
    यह न सोचा था कभी इतने याद आओगे तुम |

    मेरी अपनी कोई बहन नहीं है, फ़िर भी आपके दर्द से काफ़ी हद तक परिचित हूँ |
    बस यह कह सकता हूँ आज फ़िर से मेरी ज़िन्दगी की 'इस' कमी का आहसास करवा दिया आपने |

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  3. भावुक मैं भी हुआ

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  4. बहुत मार्मिक पोस्‍ट .. आपके लिए आज के दिन इसकी याद स्‍वाभाविक है !!

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  5. अतिसंवेदनशील अभीव्यक्ति .

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  6. संवेदनाओं को झकझोर दिया आपने।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  7. स्मृतियाँ! पर्व उन्हें कुरेदते हैं।

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  8. Aankhen bhar bhar aa tee raheen..

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  9. दुखद हालात से उपजी एक् अति मार्मिक रचना!!

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  10. बहुत ही भावपूर्ण लेख संस्मरण और रचना . दुनिया में माँ से बढ़कर और कोई नहीं है उनकी कमी हमेशा सताती रहेगी......

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  11. भाई चाहते हुए भी बहन का साथ दे सके तो उस की पीड़ा भी जानी जानी चाहिए।

    रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!

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  12. आपकी ये रचना सिधे दिल तक उतर गयी।

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  13. बहुत सी आंखे नम हुई होंगी पढकर,मेरी भी उनमे शामिल है।

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  14. मां के जाने की बात मत किया करो वत्स वह तो हमेशा साथ रह्ती है कही भी हो ...........पर मां कभी नही जाती कही......ये न तो दुख है न सतांप ये तो महाप्रलय है ......जब ऐस होता है तो इसे अपने दिल के कोने समेट लो आकाश के ब्लैक होल कि तरह.........अब फिर मत कहना ऐसा..........

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  15. सम्वेदना के धरातल पर हम सभी एक दूसरे से जुडे है इसीलिये हम मनुष्य है ,यह भावनायें न होतीं तो हम में और पत्थर में क्या फर्क रह जाता . आप सभी को मैने अपने अपनत्व के अधिकार से अपने इस दुख मे सम्मिलित करने का साहस किया जिस तरह आप मेरी आँखों से रोये है मै भी आपकी आँखों से रोया हूँ... आप सभी का अपने अंतर्मन् से आभारी हूँ..भातृत्व का यह ज़ज़्बा कायम रहे ..

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  16. namaste maamji,
    sach much yeh kavita jitani bhi bhahne unke liye samarpit hai.
    Wakai mamji ne kafi achha likha hai,
    aaj pata chala dard bhi seema kya hoti hai......


    Mamta......."_"

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  17. mujhe nahi maloom bhaiya ki mai tab kaise ise padhne se chook gaya tha lekin aaj padh raha hu to shayad aankhein utni hi nam hai jitni ho sakti hainm type karte hue akshar dhundhlaate hue se dikh rahe hain......is se jyada kuchh kahne ki himmat hi nahi ho rahi hai...... muaafi itni der se pahunchne par... bas itnaa hi....

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