मुझे डायरी लिखने का शौक बचपन से रहा है । संयोग से बचपन में ही महात्मा गांधी की आत्मकथा पढ़ने का अवसर मिल गया । गांधीजी अपने बचपन में रोजनामचा लिखा करते थे और उसमें वे दिन-प्रतिदिन की घटनाओं का सत्यता के साथ उल्लेख करते थे । गांधीजी से प्रेरित होकर मैने शालेय जीवन में इसी तरह रोजनामचा लिखने की शुरुआत की और धीरे धीरे वह साहित्यिक डायरी लेखन में तब्दील हो गया । इस तरह सन 1971 से लेकर अब तक मैं लगातार डायरी लिखता चला आ रहा हूँ और मेरे पास इस तरह लिखे हुए शब्दों का एक विशाल संग्रह है । अपने लिखे हुए इन शब्दों से मुझे बहुत ताकत मिलती है और मेरी अधिकांश कवितायें ,कहानियाँ और लेख इन्ही डायरियों से ही निकलते हैं । प्रतिदिन लिखी जाने वाली इन डायरियों के अलावा कुछ और डायरियाँ और नोटबुक्स भी मेरे पास हैं जिनमें अनमोल वचन से लेकर बीमारी दूर करने के नुस्खे,फिल्मी गीत,शायरी,महान लोगों के विचार,पढ़ने योग्य पुस्तकों की सूची ,पते,टेलीफोन नम्बर और न जाने क्या क्या है ।
डायरी लिखने का शौक मुझ पर इस तरह हावी रहा कि मैने चलती हुई रेल और बस में भी डायरी लिखी । क्लास रूम और लायब्ररी तो मेरी प्रिय जगह रही ही हैं । यात्राओं में डायरी हमेशा साथ रही और कुतुब मीनार और ताजमहल में बैठकर डायरी लिखने का अवसर भी मैने नहीं गँवाया । डायरी लेखन का आनन्द उस समय और अधिक आता है जब बरसों पहले लिखे किसी पन्ने को खोल लो और किसी मित्र या रिश्तेदार को पढकर बताओ कि 20 साल पहले मैने आपके घर फलाँ फलाँ दिन करेले की सब्ज़ी खाई थी । या किसी से कहो कि आप फलाँ के विवाह समारोह में खूबसूरत सी नीले रंग की शर्ट पहन कर आये थे । जीवन की ऐसी अनेक छोटी छोटी घटनाएँ जो समय के प्रवाह में मस्तिष्क के स्मृति भंडार से विलोपित हो जाती हैं इन डायरियों में विद्यमान रहती हैं ।इन डायरियों में वह इतिहास दर्ज़ होता है जो कभी भविष्य में दुनिया के इतिहास निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकता है ।
इन डायरियों को सम्भाल कर रखना मेरे लिये एक महत्वपूर्ण काम रहा । मैट्रिक तक तो अपनी आलमारी में ताले में बन्द कर रखता रहा लेकिन उच्च शिक्षा के लिये बाहर जाते समय मै इन्हे बाकायदा कपड़े का पार्सल बनाकर और लाख से सील कर रख गया । साल में एक बार इस पार्सल को मैं खोलता और पिछली डायरी उसमे रख देता ।नागपुर में बुआ के यहाँ रहते हुए जब लगा कि भाई बहन शरारतन मेरी डायरी खोलकर पढ लेते हैं मैने एक तरीका ईज़ाद किया । मैं डायरी को धागे से लपेट देता था और गिन लेता था कि मैने कितनी बार लपेटा है । यदि कोई खोलता तो पता चल जाता क्योंकि वह यह सोच ही नहीं सकता था कि इसमे भी कोई ट्रिक है। हर बार मैं लपेटने की यह संख्या बदल देता ।
सबसे बड़ा संकट मेरे सामने तब उपस्थित हुआ जब मेरा विवाह हुआ । एक मन तो हुआ कि यदि वैवाहिक जीवन को सफल बनाना है तो इन डायरियों को नष्ट कर दिया जाये लेकिन फिर लगा कि यह तो अपने अतीत की हत्या करने के समान होगा । फिर मन हुआ कि इन्हे वैसे ही पार्सल बना कर सील कर दिया जाये और अपने पैतृक निवास में किसी आलमारी के निचले खाने में हमेशा हमेशा के लिये दफ्न कर दिया जाये । लेकिन यह विचार भी आया कि भविष्य में जब कभी इसे खोलने का अवसर आयेगा तब क्या होगा । मान लीजिये मेरा आकस्मिक निधन हो जाता है तब पत्नी किसी दिन इसे खोलकर देखेगी ही ..तो मरने के बाद मट्टी पलीत हो इससे अच्छा जीते जी हो जाये । यह सोचकर मैने हिम्मत जुटाई ,इन डायरियों को रैक में सजाया और पूरे आत्मविश्वास के साथ पत्नी से कहा “ तुम्हारे मेरे जीवन में आने से पूर्व जो कुछ भी मेरे जीवन में घटित हुआ है वह इन डायरियों में लिखा है बेहतर है तुम इन्हे पढ़ लो ।“ यह मनुष्य का स्वभाव है कि जो गोपनीय है उसे जानने की उत्सुकता उसमें अधिक होती है ,लेकिन यहाँ तो सब कुछ “ ओपनीय ” था अत: मैं बच गया । हाँ धीरे धीरे उन्होने सब पढ़ लिया ,कुछ तकरार –वकरार भी हुई लेकिन अंतत: सब ठीक हो गया ।
इस तरह मेरा डायरी लेखन निर्बाध गति से चल रहा है । अब यह डायरियाँ मेरे घर में ओपन टू आल हैं । आप भी सादर आमंत्रित है इन्हे आकर देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं । और अब अभिव्यक्ति के इस नये माध्यम के अंतर्गत इन्हे ब्लॉग पर भी देने का विचार कर रहा हूँ । निस्सन्देह इनमें से कुछ रोचक अंश ।आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें
आपका पड़ोसी -शरद कोकास
आप ने कमाल कर दिखाया है। डायरी बहुत बार लिखने का प्रयास किया। लेकिन कभी सफल नहीं हो सके। हम तो सुबह लिखा पन्ना शाम को तलाश करते रहते हैं। दफ्तर में किताबें, फाइलें और कागज हैं कि सब कुछ कैसे संभलता है मैं खुद भी नहीं जानता। पर आप का यह संग्रह होगा लाजवाब। देखते हैं कभी देख पाते हैं उसे या नहीं।
जवाब देंहटाएंचलिए।
जवाब देंहटाएंइसे देखना भी शायद रोचक रहे कि आखिरकार इन महती डायरियों में सर्वजनीन हितार्थ क्या कुछ है।
डायरी लिखना बहुत हिम्मत की बात है, बहुत अच्छे शव्दो मे आप ने यह सब लिखा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपने बहुत ही अच्छी तरह से समझाया है। कभी हमें भी रोग लगा था डायरी लिखने का पर समय के साथ कुछ अजीब घटा तो उसे छोड़ दिया।
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से सहमत हैं। अगर आप अपने विचारों को एहसासें को हमसे बाँटना चाहें तो ब्लाग पहला एहसास के सदस्य बनें। इस ब्लाग को अभी ही षुरू किया है।
maine bhee koshish ki thee dayri likhne ki
जवाब देंहटाएंkuch din baad moh bhang ho gaya :)
venus kesari
बहुत बढ़िया। बेहतरीन यथार्थ।
जवाब देंहटाएंहमने डायरी कभी नहीं लिखी। इस बीमारी से दूर ही रहे। उनकी खिल्ली उड़ाते रहे जो डायरी लिखते थे, खुद को बुद्धिजीवी समझते हुए। था भी यही सच।
...
लिखते तो हम भी हैं..गजब लिखा है भई.
जवाब देंहटाएंडायरी लिखने की आदत बहुत थी पहले अब बंद कर दिया है :)
जवाब देंहटाएं"यह मनुष्य का स्वभाव है कि जो गोपनीय है उसे जानने की उत्सुकता उसमें अधिक होती है ,लेकिन यहाँ तो सब कुछ “ ओपनीय ” था अत: मैं बच गया ।"
जवाब देंहटाएंजान कर अच्छा लगा | कुछ एसा ही अनुभव आप के इस भाई का भी है |
dairy main bhi likhti hoon par aksar yahi sochti hoon ki likhne ko to apni sachhi baat likh deti hoon lekin ..........fir auron ka sach likhne ki himmat nahin hoti ki kahin ye unke jeevan ko na prabhavit kar de ..........duniya choti hai par uske aankh kan bahut hai
जवाब देंहटाएंमेरी भी पत्नीजी ने मेरी डायरियां पढ़ीं थी। और कमेण्ट किया था - तुम बहुत भोले हो! जान बच गई थी!
जवाब देंहटाएंbhaiya mein abhi 17 saal ka hoon aaj se 6 saal pehle meine apne tau se pareshan ho kar ek diary likhi thi mein us samay mk gandhi or saha jaha ke bare mein padaa tha ki woh bhi likhte the diary isliye meine bhi likh dalli mujhe baad mein dant lagi woh diary aaj bhi tau ke pass hein lekin mjhe daar nahin kyounki meine usme kuch bhi jhut nahi likha
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