छत्तीसगढ के पडोस में एक राज्य है गुजरात जहाँ बडौदा में मेरे कवि मित्र नरेश चन्द्रकर रहते हैं.हम दोनों के बीच पत्रों में ढेर सारी बातें होती हैं न केवल साहित्य की बल्कि दुनिया जहान की. आज उनका पत्र मिला तो मुझे लगा यह चिठ्ठी अपने अन्य मित्रों को भी पढवानी चाहिये .दो दोस्तों के बीच की यह बातें शायद आपको भी अच्छी लगें..शरद कोकास
14 जून 2009
नरेश चंद्रकर का पत्र और तस्वीर
प्रिय शरद ,
साहित्य को अपनी ज़िन्दगी बना लेने के बाद से यह डर नहीं रहा कि मै इन दिनो लिख –पढ़ रहा हूँ कि नहीं , मैं कहीं छप रहा हूँ कि नहीं , कोई मुझ पर लिख रहा है कि नहीं ।यह कितनी बड़ी बात हैं ? कितने साहस से भर जाना है । क्योंकि लगता है ..आखिरी सांस तक जब लिखना है, अंतिम दिन भी जब हाथ में किसीका संग्रह होगा तो जल्दबाज़ी किस बात की..डर किस बात का ..रचना में चाहे जितने अंतराल आयें आखिर तो मैं बचा ही रहूंगा । कवि तो मैं तब भी रहूंगा जब नहीं लिख रहा हूँ । अपने होने को ही जब कवि मान चुका हूँ तो काल से भी होड़ लेने की ताकत जैसी शमशेर जी में थी वैसे तुममें मुझमें भी आ जायेगी ।
इन दिनों रचनात्मक अंतराल जी रहा हूँ। पढ़ता जमकर रहा हूँ। पत्र भी लिखे पत्रिकायें पढ़ीं ।कुछ संग्रह मंगाये जैसे अनिता वर्मा का ‘ रोशनी के रास्ते पर ‘ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का ‘फिर भी कुछ बचा रहेगा’ आशुतोष दुबे का ‘ यकीन आयतें ‘ नीलेश रघुवंशी का ‘अंतिम पंक्ति में ‘और लीलाधर मंडलोई का ‘ दाना पानी ‘
इस बीच तुम्हारे पत्र प्राप्त हुए जैसे यही जिसमें तुमने 45 डिग्री के ग्रीष्मकाल में मुझे लिखा था और जिसमें भैंसो को कीचड़ में लेटे हुए देखने का तुमने जिक्र किया था। तुम्हारा यह पत्र बहुत निजी ,आत्मीय,और देखे हुए का बयान जैसा पत्र था । तुम (भी) पत्र लिखने में उस्ताद हो । बहुत अच्छा पत्र लिखा । तुमने बाज़ार से तरबूजे खरीदे और कवि विनोद कुमार शुक्ल को याद किया कि उन्हें तरबूजे पसन्द हैं। तुम जब भी छत्तीसगढ़ के इस ‘कलिन्दर’ को खाते हो तो भाई नासिर अहमद सिकन्दर को याद करते हो ।
तरबूज से जुड़ी इस याद–धारा में मेरा नाम और मेरी कविता जो दूसरे संग्रह में है ‘मतीरे’ पर। राजस्थानी भाषा में तरबूज को ‘मतीरे’ कहते हैं..उस पर है। तुम्हारे ध्यान से यह कविता निकल गई हो तो ज़रा याद कर लेना मेरे भाई । कलिन्दर मुझे और मेरे बेटे प्रतीक को भी खूब पसंद है । हम हर कीमत पर इसे खरीद कर ले आते हैं और प्रबीता की डाँट सुनते हुए पाँच किलो का एक तरबूज आधा आधा दोनों एक बैठक में खा जाते हैं। इस गर्मी में यह हरकत हमने कई बार की ।एक दिन तो हमने डेढ़ सौ रुपये का एक तरबूज खरीदा। प्रबीता के अनुसार बाज़ार से यह दाम दुगना है । पर हमें अपने मित्र कलिन्दर को हर कीमत पर खरीदना और उसका आनन्द लेना बेहद पसन्द है।
तुमने लिखा कि नासिर अहमद सिकन्दर ने कविता लिखना स्थगित कर रखा है ।ऐसा क्यों? उसे ज़रूर कोई अकेलापन है । तुम उसकी मदद करो और फोन, पत्र ,बातचीत से कविता में फिर डुबो दो ।जैसे शुरू में मैने लिखा था ना, कवि कभी स्थगित नहीं होता वह हर हाल में कवि बना रहता है ।हाँ ,परंतु अपना कोई मित्र कविता लिखते लिखते ‘कोमा’ में जाने लगे तो हम मित्रों को अच्छे सर्जन की तरह उसका ऑपरेशन करके ठीक कर देना चाहिये। और मै जानता हूँ तुम कवियों के डॉक्टर हो ।तुम्हारे पास कवि अपने सेंटिमेंट्स का इलाज़ करा सकते हैं। मुझे लगता है नासिर के सेंटीमेंट्स कमज़ोर हो रहे हैं।
तुमने अपने ब्लॉग की सूचना दी । हाँ भाई मानता हूँ आजकल हर बड़े कवि (including you ) का ब्लॉग है । परंतु जिस रफ्तार से तुम दुनिया की हर नई तकनीक को अपना लेते हो मैं नहीं अपना पाता ..पर कुछ करूंगा ।फिलहाल तो हम दोनों मिलकर ई-मेल के इस ज़माने में पत्र लेखन को ज़िन्दा रखेंगे ।
और बताओ..मेरी भाभी को सादर प्रणाम कहना। कोपल के परीक्षा परिणाम अच्छे आये होंगे गर्मियों मे वह मामा के घर जबलपुर में चिकन लॉलीपॉप और मटन बिरयानी के मज़े लूट रही होगी ।उसे भी मेरा स्नेह।
तुम्हारे अपने क्या हाल हैं ? इधर ‘जनपथ’ पत्रिका आरा से कुमार वीरेन्द्र निकाल रहा है ।इसमें मेरा पत्र जो मैने विजेन्द्र जी को उनकी ‘मैग्मा’ कविता के लिये लिखा था,छपा है । अब वे अगले अंक में विजय कुमार (तस्वीर में नरेश के साथ) को लिखे मेरे पत्र को भी छाप रहे हैं जो मैंने उनकी कविता ‘मीठी नदी ‘ पर लिखा था ।इस तरह सम्भवत: यह एक कॉलम की शक्ल लेते हुए कभी तुम्हे जो मैने तुम्हारी कविता “पुरातत्ववेत्ता” पर पत्र लिखा था उसे भी कुमार छापेगा ।अच्छा ‘जनपथ’ कहीं मिले तो पढ़ना अन्यथा मुझे कहना मै तुम्हे भेज दूंगा ।
अभी इतना ही..।प्रबीता के लिये इग्नू विश्वविद्यालय से बी.एड. का फॉर्म लेने जाना है.. मैं चलता हूँ..।
तुम्हारा मित्र-कवि-भाई नरेश चंद्रकर
अच्छा जी ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंदिल खोल कर मित्र कवि ने दुसरे मित्र को पत्र लिखा है, बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
एक मित्र को दुसरे मित्र का खत लिखना अच्छा लगा, सुन्दर खत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपिछले दिनों परिकल्पना प्रकाशन से छपा नरेश चन्द्रकर जी का कविता संग्रह 'बहुत नर्म चादर थी जल से बुनी' पढ़ने का मौका मिला। उसमें एक छोटी-सी कविता मुझे बहुत पसंद आयी, जिसके यहां प्रस्तुत कर रहा हूं...
जवाब देंहटाएंक़रार
हममें से कितनो ने किया है
अपने जीवन से क़रार
पृथ्वी पर रहने लायक जगह खोजने
बच्चों को जीने लायक भविष्य देने
दंगे फ़साद ख़ौफ़ और तबाही के दम पर
आस्तिक न होने
और आस्था को अन्धी चुड़ैल कहने के क़रार
हममें से कितनों ने किये हैं
यह छोटी बात नहीं है
अब इसी क़रार पर टिकी हैं सारी उम्मीदें!!
एक सुंदर ब्लॉग पर स्पर्शी पत्र।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
bhaai ,sahityik "guftagu"se ru-b-ru karaaya.dhanyvaad.E-mail ke daur main "patr"snail-mail,marta ,nahin ,hai ,muflisi zinda rakhti hai khat ko ."patr"main dharkane hoti hain bhaai-sahib.aadaab,-veerubhai.blogspot.com
जवाब देंहटाएं"Tecno-phobia"achcha khasa mujhe bhi raha hai,ab dhire dhire cheez raha hai .sikh raha hun ,blog,orkut,E-mail ki marfat .veerubhai1947.blogspot.com
जवाब देंहटाएंवाह!! क्या बात है. सचमुच बहुत बढिया.बधाई.
जवाब देंहटाएंkya baat hai, aapne purani yad taja kar di.narayan narayan
जवाब देंहटाएंबहुत आत्मीय पत्र
जवाब देंहटाएंहिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपका हर एक ब्लॉग एक से बढकर एक है!
जवाब देंहटाएंपर अब यह परम्परा धीरे धीरे विलुप्त हो रही है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
फिर एकबार आपसे रु -ब -रु हो रही हूँ ..!' परिधान' ब्लॉग पे आपकी टिप्पणी बेहद अच्छी लगी ...सही कहा ,पुरूष भी अपने परिधानके कारन प्रभाव शाली लगते हैं ..कोई दो राय नही ..!एक औरत होने के नाते,मशवरा,केवल,महिलाओं को देती हूँ..बस इतनाही..!
जवाब देंहटाएंऔर इस बात से भी सहमत हूँ , कि ,साडी , ये भारतीय नारी के लिए सब से अधिक सुंदर तथा गरिमा मई परिधान है ...और मेरा मूड, तो, चाहे बाहर जाना हो ,या मेहमान आनेवालें हों , चोली के चयन से बनता है ..! मै हमेशा , चोली से साडी की ओर जाती हूँ ..साडी की सुन्दरता , अनूठे रंग ढंग से बनी चोली मे है ..!
"परिधान' मे ही मैंने, चोली के कई प्रकार( सचित्र) और किस तरह से उन्हें बनाया गया,इसके बारे मे लिखा है..!"चोली दामन' इस नाम की एक प्रदर्शनी भी कर चुकी हूँ॥!
खैर! अब आपके मित्र के पत्र के बारेमे..तहे दिलसे शुक्रिया...इतना सुंदर,अंतरग ख़त सांझा करनेके लिए...!
Khato kitabat ka(apne hastakshar me likhe gaye) hunar khatm-sa ho gaya hai..!
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