30 नवंबर 2009

जिनकी आँखें नहीं होती उन्हें सुनाई ज़्यादा आता है

मुक्तिबोध स्मृति फिल्म एवं कला उत्सव भिलाई में प्रदर्शित फिल्म : कलर ऑफ पैराडाइज़


ऐसा कहते हैं कि जिनकी आँखें नहीं होती उन्हें सुनाई ज़्यादा आता है , वे स्पर्श को अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं और गन्ध से हर चीज़ को पहचान लेते हैं । यह देखिये आठ साल का नेत्रहीन बालक मोहम्मद जो तेहरान के एक अन्धविद्यालय में पढ़ाई कर रहा है अचानक स्कूल के बाग़ीचे में कुछ सुनकर ठिठक गया है .. अरे यह तो किसी चिड़िया के बच्चे की चूँ चूँ है ... एक एक कदम सम्भालकर सूखे पत्तों के ढेर में आगे बढता हुआ मोहम्मद .. डर रहा है कहीं गलती से उसका पाँव घोंसले से नीचे टपके हुए नन्हे बच्चे पर न पड़ जाये .. इधर उसे  चिड़िया के बच्चे के शिकार के लिये आतुर एक बिल्ली की म्याऊ भी सुनाई दे रही है जिसे वह उसकी आवाज़ की दिशा में पत्थर मारकर भगाता है और..अरे वा ! अंतत: उसने पत्तों के ढेर में छिपे उस चिड़िया के बच्चे को ढूँढ ही लिया । लेकिन अब .. उसकी ज़िम्मेदारी है उसे वापस घोंसले में पहुंचाना । उसने टटोलकर पेड़ भी ढूंढ लिया है और बच्चे को शर्ट की ऊपरी जेब में रखकर वह पेड़पर चढ़ने भी लगा है । और लो उसने घोंसला भी ढूंढ लिया ,धीरे से शर्ट की जेब से उस बच्चे को निकाल कर घोंसले में रखा, उसकी खुली हुई चोंच में उंगली रखी और मुस्कराता हुआ नीचे उतर आया । उसकी मुस्कुराहट में यह भाव था कि उसने एक नन्हे बच्चे की जान बचाई है ,बिल्ले से. भूख से और कुचले जाने से ।
             यह दृश्य है ईरान के फिल्म निर्देशक माजिद मजीदी की अंग्रेजी सब टाइटिल के साथ बनी फारसी फिल्म “कलर ऑफ पैराडाइज़ “ के ।फिल्म के अगले दृश्य में मोहम्मद का विदुर पिता उसे स्कूल से गाँव ले आता है जहाँ मोहम्मद की दादी है और उसकी दो बहने हैं लेकिन पिता के मन में बार बार यह खयाल आता है कि यह अन्धा बेटा उसके लिये जीवन भर का बोझ है और उसीकी वज़ह से वह दूसरा विवाह नहीं कर सकता । फिल्म के अंतिम दृश्य में चूज़े की कहानी मोहम्मद के जीवन में घटित होती है जब वह पिता के साथ पहाड़ी नदी पार करते हुए तेज़ प्रवाह में बहने लगता है । पुत्र को बहता देख क्षण भर के लिये पिता के चेहरे पर यह भाव आता है कि चलो इसे और उसे दोनो को मुक्ति मिली .लेकिन अगले ही क्षण उसे आत्मग्लानि होती है और वह धार में कूद कर उस बच्चे को बचा लेता है ।
नेत्रहीनों पर तो हमारे यहाँ भी बहुत सी फिल्में बनी हैं लेकिन ईरान में बनी इस फिल्म का उद्देश्य नेत्रहीनों की पैरवी करना नहीं है ..न यह फिल्म उनके बारे में किसी प्रकार की सहानुभूति पैदा करने का प्रयास करती है । यह एक ऐसे पिता की कथा है जिसके लिये संतान होने का सुख उसके नेत्रहीन होने के दुख के साथ द्वन्द्व करता हुआ अंतत: उसके मनुष्य की परिभाषा गढ़ता है , उसके भीतर विश्वास और प्रेम का सृजन करता है । यह इस फिल्म “कलर ऑफ पैराडाइज़ “ का सार्थक सन्देश है ।
आइये अपने मनुष्य होने के इस अवसर को हम इस फिल्म के नज़रिये से ,धर्म ,देश ,काल की परिभाषाओं से अलग हटकर देखें । ---- आपका शरद कोकास
आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें (चित्र गूगल से साभार )

16 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति में यदि कहीं कमी रह जाती है तो वह उसे दूसरे किसी माध्यम से पूरा करती है।
    अब हाथी इतना ताकतवर इतना विशाल पर उसके देखने की क्षमता बहुत कम होती है पर उसकी घ्राण शक्ति बहुत ज्यादा होती है।

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रकृति में यदि कहीं कमी रह जाती है तो वह उसे दूसरे किसी माध्यम से पूरा करती है।
    अब हाथी इतना ताकतवर इतना विशाल पर उसके देखने की क्षमता बहुत कम होती है पर उसकी घ्राण शक्ति बहुत ज्यादा होती है।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इन पंक्तियों का इस्तकबाल करना चाहता हूं।

    ‘यह एक ऐसे पिता की कथा है जिसके लिये संतान होने का सुख उसके नेत्रहीन होने के दुख के साथ द्वन्द्व करता हुआ अंतत: उसके मनुष्य की परिभाषा गढ़ता है , उसके भीतर विश्वास और प्रेम का सृजन करता है ।’

    जवाब देंहटाएं
  4. YE SACH HAI JAB KISI BAAT KI KAMI RAH JAATI HAI TO PRAAKRITI USE APNE HI ANDAAJ MEIN POORA KAR DETI HAI ... JEEVAN DENE WAALA JEENA KA JARIYA NIKAAL HI DETA HAI .... ACHAA VISHLESHAN HAI AAPKA ...

    जवाब देंहटाएं
  5. आमतौर से ईरानी फिल्में यूं ही बहुत बढ़िया होती हैं. इस परिचय के लिए आभार. हिन्दी की स्पर्श भी एक बेहतरीन फ़िल्म थी.

    जवाब देंहटाएं
  6. इनलोगों को हमारी सहानुभूति की नहीं हमारे साथ की जरूरत है, वो भी बिना किन्हीं शर्तों के....उस दृष्टिहीन बच्चे ने जो काम किया...वो आँखोंवाले बच्चे भी शायद न करते....मानवीय संवेदनाओं से भरी इस फिल्म से रु-ब-रु करवाने का बहुत बहुत शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  7. कलर ऑफ पैराडाइज़ -अच्छा लगा इस फिल्म के बारे में जानकर.

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छा लगा इन फ़िल्म के बारे जान कर, कभी भारत मै भी बनती थी अच्छी फ़िल्मे.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही उम्दा व सार्थक प्रयास । लाजवाब रचना

    जवाब देंहटाएं
  10. हां, प्रकृति यदि एक अंग को कमज़ोर बनाती है तो दूसरे को अतिरिक्त शक्ति प्रदान कर देती है. ये फ़िल्म देखना चाहें तो मिलेगी कहां?

    जवाब देंहटाएं
  11. मानवीय रिश्तों में सुख और दुखः के बीच जीवन की कहानी है। विपरीत परिस्थितियों में कैसे जीवन हर बार विजयी होता है। बहुत प्रेरणास्पद कथा है। फिल्म वास्तव में देखने लायक होगी।

    जवाब देंहटाएं
  12. Yah shat pratishat sach hai...gar eeshwar ek gyanendriy ko kam karta hai,to, doosareko adhik bal deta hai...

    जवाब देंहटाएं

आइये पड़ोस को अपना विश्व बनायें