द्रश्य एक: नगर परिषद गान्धी विद्यालय ,भंडारा (महाराष्ट्र) कक्षा नवमी , लंच के बाद अंग्रेज़ी का पीरियड
“ये बेंचे किसने टेढ़ी- मेढ़ी की हैं ? हफीज़ खान मास्साब की गरज़ती हुई आवाज़ क्लास में गूंजी । सारे छात्र और छात्रायें सर झुकाकर खड़े थे लेकिन हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी कि अपना अपराध कबूल कर ले । फिर वे एक एक कर सभी के पास गये और बहुत प्यार से पूछा “ बेटा यह बेंचे किसने गिराई हैं ? “ लेकिन सब चुप । मास्साब मुस्कराने लगे “ अच्छा इतनी एकता तो है तुम लोगों में कि गुनाहगारों का नाम नहीं बताओगे । ठीक है फिर सभी को सज़ा मिलेगी । गुनाह में सब बराबर के शरीक हैं । चलो सब बेंच पर खड़े हो जाओ ” हफीज़ खान मास्साब ने आदेश दिया । “ सभी बच्चे चुपचाप बेंच पर खडे हो गये लेकिन मैं अपने स्थान पर ही खड़ा रहा । वे मेरे पास आये और कहा “ क्यों भाई आप क्या लोकमान्य तिलक हैं या गान्धी हैं जो गुनाह में अपने आप को शरीक नहीं मान रहे हैं ? ठीक है, फिर अपने साथियों के नाम बताईये ।मैने कहा “ न मैं अपने साथियों के नाम बताउंगा न मैं यह सज़ा भोगूंगा क्योकि यह बेंचें मैने नहीं गिराई हैं । हफीज़ खान सर इतनी देर में नरम पड़ चुके थे उन्होने मेरी पीठ ठोंकी और कहा “शाबाश, सच कहने की हिम्मत है तुम में । “ फिर सभी को बेंचों से नीचे उतर आने का आदेश किया और खुद नीचे गिरी बेंचें उठाने लगे । यह कहने की ज़रूरत नहीं कि हम लोगों ने दो मिनट में क्लासरूम को यथावत कर दिया ।
द्रश्य दो : नगर परिषद गान्धी विद्यालय भंडारा ,(महाराष्ट्र), कक्षा आठवी , हिन्दी का पीरियड
“ हाँ भई निबन्ध कौन कौन लिखकर लाया है ? प्यारेलाल फुलसुंगे सर ने आते ही कक्षा में प्रश्न किया । आधे से अधिक बच्चों ने अपने हाथ खड़े किये । “शाब्बास “ सर ने कहा । ठीक है अब अपने अपने निबन्ध से एक एक अंश पढ़कर सुनाओ । एक लाईन से छात्रों ने पढ़ना शुरू किया । नईम, घनश्याम, देशवंत,सुरेन्द्र,तिलक,चन्द्रपाल ,सूरज पाल , नानक,इशुप्रकाश फिर लड़कियों की लाईन में इशरत ,अर्चना,अंजुम.हर्षबाला,शांता, नाहीद ।तीसरी लाईन की शुरुआत मुझसे हुई । मैने पढना शुरू किया “ चान्दनी रात में नौका विहार... नर्मदा की संगमरमर की दूधिया चट्टानों पर चान्दनी ,माँ की गोद में खेल रहे बच्चे की तरह खेल रही थी , हमारी नाव तेज़ प्रवाह में इस तरह आगे बढ़ रही थी जैसे कोई सेना रात में चुपचाप शत्रु के शिविर पर आक्रमण के लिये बढ़ी चली जा रही हो “..मैं इतना कहकर कुछ देर के लिये रुका । सर ने आगे पढ़ने का इशारा किया । मैने फिर पढ़ना शुरू किया और पूरा निबन्ध खत्म करके ही दम लिया । प्यारेलाल फुलसुंगे सर ने पूछा “ तुमने सचमुच भेड़ाघाट मे नर्मदा में चान्दनी रात में नौका विहार किया है ? मैने कहा “ नहीं सर मै तो आज तक नाव में ही नहीं बैठा हूँ ,हाँ भेड़ाघाट देखा ज़रूर है । “ “ मतलब तुमने यह पूरा निबन्ध कल्पना से लिखा है ? “ “ जी सर “ मैने कहा । वे मेरे पास आये और मुझे शाबासी देते हुए कहा “ तुम ज़रूर बड़े होकर कवि और लेखक बनोगे ।“
मेरे दोनो दिवंगत शिक्षकों स्व.हफीज़ खान साहब और स्व. प्यारेलाल फुलसुंगे का आज शिक्षक दिवस पर पुण्य स्मरण । --- शरद कोकास
(चित्र मे तिमज़िला मिडिल स्कूल जिसकी यह इमारत अब नही है साथ ही टीन की छ्प्पर वाला गान्धी विद्यालय जिसकी जगह अब नई इमारत बन रही है )
आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें
आप ने अपने शिक्षकों को स्मरण किया है। हमें भी अपने शिक्षक याद हैं।
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस पर समस्त शिक्षकों को नमन!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, शरद जी |
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस पर मैं भी अपने सभी शिक्षकों
का पुण्य स्मरण करते हुए नमन करता हूँ |
aapke yad dilane se humane bhee apane shikshakon ko pranam sahit yad kiya.
जवाब देंहटाएंहमारी पहचान हैं शिक्षक !
जवाब देंहटाएंजय शिक्षा
! जय शिक्षक ! जय शिक्षक दिवस !
शिक्षकों का पूर्वानुमान सही साबित हो गया है..बहुत शुभकामनायें..!!
जवाब देंहटाएंशिक्षकों के बिना इन्सान का व्यक्तित्व निखर ही नहीं सकता। और उन्हें सिर्फ एक दिन ही नहीं हर दिन याद रखना चाहिये। बहुत सुन्दर आलेख है बधाई
जवाब देंहटाएंअरे आपने तो स्कूल के दिनों की याद दिला दी ऐसे बहुत से किस्से हमने भी किये हैं, पर अब जाने भी दें-
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस पर नमन ।
haa maene bhi yadd kiya aap bhi dekhe http://darvaar.blogspot.com
जवाब देंहटाएंShikshon ko yaad kiya..ek lekh likha tha, san 1998,me,isi din, jo Indian Express me chhapa tha...durbhgy ki, wo log nahee rahe..lekin mere shikshak to kayi rahe...jinhon ne jeeven shiksha dee...jaise ki, mere Dada dadi...aur Gandhiji...jinhen kabhi nahee mili!
जवाब देंहटाएंTransliterartion kaam nahee kar raha!
http://shamasansmaran.blogspot.com
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आप की दोनो कहानिया बहुत अच्छी लगी, यह है तो सच्ची लेकिन इन्हे अब कहानी ही कहुंगा, ओर आप ने अपने शिक्षको को आज के दिन याद किया यह भी एक तोहफ़ा है, बहुत सुंदर लगा. मुझे भी कभी कोई मेरा शिक्षक कही भी मिल जाये तो मै उस के पांव जरुर छुटा हुं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
शरद जी ,यहाँ जूते मारने वाले मिल जाएँगे ,पत्थर फेंकने वाले मिल जाएँगे ,गाली देने वाले मिल जाएँगे ,लेकिन जिन हाथों ने उन्हें कलम पकड़ना सिखाया ,पहला पहला अक्षर लिखना बताया ,उसे याद नहीं करेंगे ,
जवाब देंहटाएंज़रा यहाँ भी निगाह डाले :- "बुरा भला" ने जागरण की ख़बर में अपनी जगह बनाई है |
जवाब देंहटाएंhttp://in.jagran.yahoo.com/news/national/politics/5_2_5767315.html
हम जो कुछ भी हैं, उसमें हमारे शिक्षकों का बहुत बडा हाथ है१
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
bhut hi accha likha ha tumne
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