
जब इस वाद्य के बारे में पढ़ा तो और भी अधिक आश्चर्य हुआ । सुमिन बाई चावल फटकने वाले एक सूपे , एक हंडी और एक धनुष को बाँस की किमची से बजाती हैं । इतना पढ़कर उत्सुकता और बढ़ गई और मैं कार्यक्रम की राह देखने लगा ।
आज 12 जनवरी 2012 को सुमिन बाई को यह सम्मान प्रदान किया गया । इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति श्री सच्चिदनन्द जोशी । अध्यक्षता कर रहे थे छत्तीसगढ़ शासन के संसदीय सचिव श्री विजय बघेल । मुख्य वक्तव्य दिया सुप्रसिद्ध पत्रकार और हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष श्री रमेश नैयर । आलोचक जयप्रकाश व कलासमीक्षक राजेश गनोदवाले ने धनकुल परम्परा पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की ।

तिजा जगार , चारखा गीत , शिव पार्वती प्रसंग ,एक एक कर वे सुनाती गईं और लोग सुनते गये । कई लोग बार बार मंच के पास आकर उनके इस वाद्य यंत्र को देख रहे थे , उन्हे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी मामूली वस्तुओं से भी ऐसी ध्वनि निकल सकती है ।
![]() |
बाँये से ऋषि गजपाल , शरद कोकास , सुमिन बाई व सहयोगी |
गनीमत है कि इस वाद्ययंत्र को यहाँ पहचाना जा चुका है और सुमिन बाई मध्यप्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद तथा छत्तीसगढ़ शासन के अनेक कार्यक्रमों में यह प्रतुति दे चुकी हैं ।
लेकिन ऐसी कला को विलुप्त होने में क्या देर लगती है ? आज जहाँ कम्प्यूटर से संगीत उत्पन्न किया जा रहा है वहाँ सूपे , हंडी और धनुष की क्या बिसात ?
जोशी जी का किस्सा सुनते हुए मुझे याद आया ऐसे ही हम लोग हॉस्टेल में जाने क्या क्या बजाया करते थे । एक दिन हमारे सीनियर और वर्तमान में प्रसिद्ध कवि और आलोचक श्री लीलाधर मंडलोई ने हम लोगों का संगीत सुना और वे हमे आकाशवाणी ले गये थे युववाणी में प्रस्तुत करने के लिये । बहरहाल वह किस्सा फिर कभी ।
आज आप धनकुल नामक इस अद्भुत वाद्य का चित्र देखिये और बधाई दीजिये लोक कलाकार सुमिन बाई बिसेन को ।
sharad kokas