16 अक्तूबर 2009

घर घर में दिवाली है मेरे घर में अन्धेरा



                 दीपावली का अर्थ सभी के लिए अलग अलग होता है .किसी के लिए यह धन की देवी लक्ष्मी की आराधना है तो किसी के लिए खुशियाँ मनाने का पर्व .किसी को मिठाइयाँ अच्छी लगती हैं तो किसी को पटाखे छुड़ाना अच्छा लगता है . बच्चों के लिए तो बस नए कपड़े मिठाइयाँ और पटाखे . दीवाली मेरे लिए मेरी माँ का जन्मदिन है . सो हम लोगों के लिए बचपन में खुशियाँ मनाने का यह एक अतिरिक्त कारण होता था . शाम को दिए जलाने के  बाद हम भाई, बहन बाबूजी के साथ दीवाली की रोशनी देखने निकल जाते थे रोशनी , रंगोली और लोगों को खुशी में डूबा हुआ देख कर हम खुश होते थे मिठाई,पटाखे , नये कपड़े ,नये बर्तन, नये गहने ..ऐसा लगता था इस दिन संसार में शायद ही कोई दुखी रहता होगा बच्चे तो थे हम ,अपनी खुशी में सारी दुनिया की खुशी नज़र आती थी लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ कि यह भ्रम टूट गया

          दीवाली की उस रात जगमगाते शहर की सड़कों पर टहलते हुए अचानक एक नेत्रहीन भिखारी दिखाई दे गया ,जीर्ण शीर्ण वस्त्र , एक हाथ में कटोरा और दूसरे हाथ की लाठी से सड़क टटोलता हुआ वह धीरे धीरे आगे बढ रहा था मैने देखा वह कुछ बुदबुदा रहा है ध्यान देकर सुना तो वह कह रहा था ..” घर घर में दिवाली है मेरे घर में अन्धेरा “ उसे देखकर मेरा मन उदास हो गया भिखारी का दिखाई देना तो आम बात थी लेकिन दीवाली की रात को जब सारे लोग खुशियाँ मना रहे हों तब भी ? बहन सीमा ने कहा भैया देखो कितनी अच्छी रंगोली है ,लेकिन मैं बार बार पलट पलट कर उसी भिखारी को देख रहा था
          जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैने बाबूजी से पूछ ही लिया बाबूजी , यह दिवाली के दिन भी भीख मांग रहा है ? बाबूजी ने कहा हाँ बेटा दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास एक वक्त के खाने के लिये भी कुछ नहीं है ,और काम करने लायक उनकी हालत भी नहीं है , भीख नहीं मांगेगे तो उनके घर चूल्हा कैसे जलेगा हमने उसे कुछ नहीं दिया था ,और लोग भी शायद कुछ देते हों यह सोचकर मैने पूछा और अगर उसे भीख नहीं मिली तो ? “ बाबूजी बोले तो क्या, वह भूखा ही सो जायेगा

      मेरा मन विचलित हो गया था लेकिन वही प्रश्न बार बार मन में घुमड़ रहा था मैने फिर पूछा लेकिन वह दिवाली की शाम को भीख मांग रहा है ? तो वह दीवाली कब मनायेगा ? “ बाबूजी ने जवाब दिया बेटा उसके तो आँखें ही नहीं है , उसके लिये क्या रोशनी और क्या अन्धेरा ,क्या दीवाली क्या ईद फिर त्योहार तो भरे पेट वालों के लिये होते हैं
            इस घटना को घटित हुए बरसों बीत चुके हैं लेकिन आज भी रोशनी के इस पर्व दिवाली पर मुझे उस बूढ़े अन्धे भिखारी की याद जाती है जस का तस उसका चित्र मेरी आँखों में है शायद वह अब इस दुनिया में नहीं हो लेकिन उस जैसे लाखों करोड़ों लोग हैं जो अपनी सूनी आंखों में भयावह अन्धेरे का चित्र लिये आँख वालों की इस दुनिया में मुश्किलों से भरी अपनी ज़िन्दगी काटने को अभिशप्त हैं
          हम जिस वक़्त रोशनी देख देख कर खुश हो रहे होते है, एक दूजे को रंगबिरंगी शुभकामनायें दे रहे होते हैं उस वक़्त क्षण भर के लिये भी हमें इनकी ज़िन्दगी में छाये अन्धेरे की याद आती है क्या ?
                   यह सवाल मैं भी अपने आप से  अक्सर करता  हूँ शरद कोकास

(चित्र गूगल से साभार ) आईये पड़ोस को अपना विश्व बनायें


25 टिप्‍पणियां:

  1. जहाँ एक ओर खुशियाँ होती है..दूसरी ओर दुखों का साम्राज्य...सब यहीं तो है..संवेदनशील हृदय से निकला मार्मिक संस्मरण.


    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

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  2. शरद जी, इस संसार में बड़े वेरायटी के लोग रहते है कुछ घर में पूरी-कचौरी खा रहे है कुछ सड़कों पर भूखे नंगे इतना सब तो ठीक है और सब जानते भी है परंतु त्योहार के दिन इस तरह से किसी भूखे पेट की कहानी सुन कर दिल भर जाता है.भगवान करें आज के दिन ऐसे कोई भी भिखारी भीख माँगता ना दिखे और उसके घर में भी उजाला हो.

    दीवाली मंगलमय हो!!

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  3. यही वह अन्धेरा है जिसके खिलाफ़ जंग होनी चाहिए. विषमताओ के खिलाफ मुहिम होनी चाहिये.
    गहन है अन्धकारा --

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  4. शरद भाई,
    मेरी परवरिश कलकत्ता की है, वहाँ दुर्गा पूजा के मौको पर हम सब भी रोनक देखने जाया करते थे ! बात तब की है जब मैं काफी छोटा था, एक बार युही विभिन्न पंडालों में घुमने के बाद हम सब गोलगप्पे, कलकत्ता में जिन्हें पुचका कहा जाता है, खा रहे थे इतने में एक छोटा सा बच्चा वहाँ आया और कुछ पैसे मांगने लगा, उस वक़्त तो हम लोगो ने उससे वहाँ से बिना कुछ दिए रवाना कर दिया! पर इस घटना के काफी सालो बाद एक दिन अचानक खाना खाते में उस लड़के की शक्ल मेरे जहेन में आ गयी और यकीं जानियेगा मैं रोने लगा और मुझे बार बार यही लगता रहा की ना जाने मैंने कितनी बड़ी भूल कर दी! वो दिन है और आज का दिन है, मैं अब दोबारा गलती नहीं करता ! और यह भी सिर्फ़ अपने लिए किसी और के लिए नहीं ! कुछ मामलों में कुछ ज्यादा ही भावुक हूँ , एसा लोग कहते है !

    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  5. रोशनी का महत्व तभी तक है जब तक हमें अंधेरे का स्मरण है।

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  6. सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
    जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
    आज सुबह 9 बजे हमारे सहवर्ती हिन्दी ब्लोग
    मुम्बई-टाईगर
    पर दिपावली के शुभ अवसर पर ताऊ से
    सिद्धी बातचीत प्रसारित हो रही है। पढना ना भूले।
    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥


    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
    हे! प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई-टाईगर
    द फोटू गैलेरी
    महाप्रेम
    माई ब्लोग
    SELECTION & COLLECTION

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  7. किस्मत के मारे...बेचारे...


    इसके अलावा और कुछ सूझ नहीं रहा है कमैंट करने के लिए...


    सच कहा आपने ...जब हम कोई खुशी मना रहे होते हैँ तो इस तरह की चीज़ों को बिलकुल भी याद नहीं करना चाहते...शायद अपनी खुशी मे6 खलल पड़ने के डर से

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  8. इस पोस्ट को पढ़कर आपके संवेदनशील होने का पता चलता है, वैसे पता तो तभी चल गया था जब आपने बताया की इप्टा से जुड़े रहे हैं.... आप पर गर्व है हमें.. लेकिन भगवन से गरीबों, असहायों के लिए प्रार्थना करने से अच्छा है की भगवन के दिए हाथों से हम उनके लिए कुछ करें. चलिए फिर अपने संग-संग और लोगों की भी दीवाली शुभ मनाएं..
    आपकी अनुमति के बिना ही आज की पोस्ट आपको समर्पित की है आशा करता हूँ आप नाराज़ नहीं होंगे.
    http://swarnimpal.blogspot.com/2009/10/blog-post_16.html

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  9. झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."

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  10. धन्यवाद् शरद खबर देने के लिए.
    मैंने देखा तुम अपने ब्लॉग में पूरी संवेदनशीलता के साथ लिखते हो जो की बहुत कम ब्लोग्स में मिलता है. दिवाली की रात भिखारी के जिक्र पर ....
    मुझे याद आती है कुछ लाइने

    "मै अँधेरा अट्टहास करता हूँ
    कुछ एक दीपकों के सहारे
    जीतने की
    मनुष्य की मिथ्या धारणा पर "
    तुम्हे और तुम्हारे पूरे परिवार को दीपावली की शुभकामनाये

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  11. चांदनी की राह में पलकें बिछाता है मगर
    है नहीं मुमकिन कि तेरा धूप से परिचय न हो।
    बेहद रोचक और मार्मिक .....

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  12. इस दीपावली में प्यार के ऐसे दीए जलाए

    जिसमें सारे बैर-पूर्वाग्रह मिट जाए

    हिन्दी ब्लाग जगत इतना ऊपर जाए

    सारी दुनिया उसके लिए छोटी पड़ जाए

    चलो आज प्यार से जीने की कसम खाए

    और सारे गिले-शिकवे भूल जाए

    सभी को दीप पर्व की मीठी-मीठी बधाई

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  13. "त्योहार तो भरे पेट वालों के लिये होते हैं।"

    यही, और सिर्फ यही, सत्य है!

    दीपोत्सव का यह पावन पर्व आपके जीवन को धन-धान्य-सुख-समृद्धि से परिपूर्ण करे!!!

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  14. पेट की चपेट से बच न सका इंसान
    इसका होता नहीं रेट कोई ले तू मान
    भर जाता है मात्र आधी सूखी रोटी से
    नहीं भरता पकवान पूरी मिष्‍ठानों से

    किसी का भर जाता है मनुहार से
    किसी का न भरता धन अपार से
    कुछ तो सिर्फ आश्‍वासन से भर लेते हैं
    कुछ वायदों से भी नहीं भर पाते हैं
    पेट को समेट न सका कोई
    पर भर लेते हैं जो संतुष्टि से
    उनके जैसा नहीं महान कोई।

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  15. शरद जी इनकी दीवाली तो कोई और ही मना रहा है...

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  16. आपकी संवेदना अच्‍छी लगी !!
    पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
    जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

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  17. घर घर में दिवाली है मेरे घर में अन्धेरा"" शरद भाई जी अगर यह एहसास हम सब को हो जाये, एक गरीब बेवस के मन की आवाज हमे सुनाई पढ जाये, ओर हम इसे समझे तो दुनिया मै कोई हेरा फ़ेरी ना करे, कोई मिलावटी समान ना बेचे, सारी दुनिया सुखी हो... ओर भाई भाई का दुशमन भी ना हो, लेकिन हम बहरे हो गये है, हमे अपना सुख दिखता है, ओर हम अपने सुख के लिये कितना गिर सकते है यह आज भारत मै मिलावट करने वालो से पता चल रहा है,ऎसे लोग कहां जागे गे.
    आप ने बहुत भावुक लेख लिखा है, आंखॊ मै आंसू आ गये,
    धन्यवाद

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  18. यह दूसरों के यहां का अंधेरा, हमारे पास की थोड़ी सी रौशनी के भी निहितार्थ पैदा कर देता है।
    इस थोड़े से सुकून भी पाना है, और इसी के प्रदर्शन से सापेक्षतः श्रेष्ठता बोध भी संतुष्ट करना है।
    हमारे त्योहारों के सामूहिकता के असली निहितार्थ गायब हो रहे हैं, और ढोंग से सरोबार प्रदर्शन की मानसिकता हावी हो रही है।
    ये सिर्फ़ बहाने भर होते जा रहे हैं।

    आपकी इस संवेदना के यथार्थ व्यवहारीकरण की कामना के साथ।
    समय

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  19. सच है शरद जी, अपनी खुशी के दौरान हम शायद ही इन गरीबों को याद करते हों. कई बार तो इनकी गुहार खुशियों में खलल सी लगने लगती है लोगों को. मार्मिक पोस्ट.
    इस पोस्ट को पढने के बाद भी शुभकामनायें तो देनी ही होंगी.

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  20. हम जिस वक़्त रोशनी देख देख कर खुश हो रहे होते है, एक दूजे को रंगबिरंगी शुभकामनायें दे रहे होते हैं उस वक़्त क्षण भर के लिये भी हमें इनकी ज़िन्दगी में छाये अन्धेरे की याद आती है क्या ?

    यह सवाल हम सभी करते हैं अपने आपसे ...
    मगर ये दुनिया है ...
    गम और ख़ुशी के हिचकोलों के बीच यूँ ही चलती है ...
    शुभ दीपावली ......!!

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  21. आपकी ये पुरानी याद पढ कर मन दीवाली पर भी बुझ सा गया । सोच लिया, अगर आज कोई भूखा मिले तो उसे खाना अवश्य खिलायेंगे।
    दिवाली की शुभेच्छा ।

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  22. दीयों के उजाले में अँधेरे का यह इक बड़ा सवाल आपने बहुत ही भावपूर्ण तरीके से रखा है...इतने मर्म से कि आँखें गर पानी छोडें तो रौशनी पैदा हो...
    ---
    हिंदी ब्लोग्स में पहली बार रिश्तों की नई शक्लें- Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान
    (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

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  23. aisa mat likha karo bhai, ki dil bhar aaye. divali par sanvedana ka yah roop....? isiliye to manvata zinda hai. shaitan sharminda hai. vah sochta hai ki mai koshish kar raha hoo ki mere log badhe lekin sharad kokas jaise log samne aa jate hai aur shaitan bhag khada hota hai. isi tarah likhte raho mere dost. kachara lekhan ke beech is tarah ke sahity ki hi zaroorat hai

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  24. शरद जी आज दीपावली सही मायने में मना रहा हूं
    दीपावली या किसी भी की सार्थकता तभी है जब
    हम इस नज़रिए से सोचें
    सादर

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