26 सितंबर 2016

ईश्वरचंद्र विद्यासागर

जन्मतिथि पर विशेष 

ईश्वर  चन्द्र  विद्यासागर     का नाम आपने सुना होगा  | उनका मूल नाम ईश्वरचंद्र बंदोपाध्याय था  बंगाल के पुनर्जागरण के काल में जिन व्यक्तियों का नाम प्रसिद्ध हुआ उनमे ईश्वरचंद्र का भी नाम था । इनका जन्म 26 सितम्बर 1820 को  पश्चिम बंगाल में हुआ था और करमाटांड़ इनकी कर्मभूमि रही  वे उच्चकोटि के विद्वान थे। उनकी विद्वता के कारण ही उन्हें विद्दासागर की उपाधि दी गई थी ।उन दिनों जब स्त्री का पढ़ना अच्छा नहीं माना जाता था उन्होंने नारी शिक्षा के लिए प्रयास किये जिस तरह नारी शिक्षा के क्षेत्र में महाराष्ट्र में सावित्री बाई फुले का नाम लिया जाता है उसी तरह बंगाल में उन्हें जाना जाता है  वे नारी शिक्षा के समर्थक थे।

हिन्दू समाज में विधवाओं की स्थिति हमेशा से दुखद रही है । उन्होनें विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए जनमत तैयार किया । । उन्होंने जनता को अपने साथ लेकर  विधवा पुनर्विवाह के लिए आंदोलन किया और अठारह सौ छप्पन में इस आशय का अधिनियम पारित कराया । सन अठारह सौ छप्पन से साथ के बीच उन्होंने अनेक विधवाओ का पुनर्विवाह कराया । यही नहीं उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का विवाह भी एक विधवा से ही किया । बाल विवाह का भी वे सदा विरोध करते रहे ।

विद्यासागर जी को सुधारक और समाज सेवी के रूप में राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता हैं विद्यासागर एक प्रसिद्ध दार्शनिक और समाज सेवी के अलावा शिक्षा विशेषज्ञ , लेखक , प्रकाशक , मुद्रक  और सुधारक थे उनका दृष्टिकोण मानवतावादी था । बांगला भाषा उस समय बहुत कठिन मानी जाती थी सो उन्होंने बांगला भाषा के गद्य को सरल  एवं आधुनिक बनाने का कार्य भी किया । उन्होने बांग्ला लिपि की वर्णमाला को भी सरल एवं तर्कसम्मत बनाया। बांगला के अध्ययन हेतु उन्होंने अनेक  विद्दालय स्थापित किए तथा रात्रि पाठशालाओं में लोगों के पढ़ने की व्यवस्था की। यही नहीं उन्होंने संस्कृत  भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए भी प्रयास किया। उन्होंने संस्कृत कॉलेज में पाश्चात्य चिंतन का अध्ययन भी प्रारंभ करवाया ।विद्यासागर जी का जन्म 26 सितम्बर 1820 को हुआ था उनका निधन 29 जुलाई 1891 में हुआ   

3 टिप्‍पणियां:

आइये पड़ोस को अपना विश्व बनायें