ऐसा अनेक लोगों के साथ होता है कि वे जन्म किसी घर में लेते हैं , जीवन किसी और घर में बीतता है और अंत किसी और ही घर में होता है । स्त्रियों के लिये तो शायद यह नियति ही है कि उन्हे माँ- बाप के घर से पति के घर जाना होता है इस तरह दो घर तो उनके स्थायी होते ही हैं । लेकिन जब भी हम एक घर से दूसरे घर में जाते हैं यह जाना चुपचाप नहीं होता । न किसी घर को छोड़ते हुए सब कुछ छूटता है , न सब कुछ साथ जाता है ।
विदेश में कमरे
वहाँ विदेशों में
कई बार कई कमरे मैंने छोड़े हैं
जिन में छोड़ते समय
लौटकर देखा है
कि सब कुछ
किराये का मकान छोड़ते हुए गृहणी व कवि का संसार |
ज्यों का त्यों है न ?- यानि
कि कहीं कोई छाप
बची तो नहीं रह गई
जो मेरी है
जिसे कि अगला कमरेदार
ग़ैर समझे …।
इसी तरह जब भी हम किसी नए घर में प्रवेश करते हैं तो ऐसा लगता है वहाँ जीवन भर रहेंगे लेकिन एक दिन आता है जब उस घर को छोड़ना पड़ता है । ज़िन्दगी में कोई मकान स्थायी नहीं होता न कोई पता । अंत में उस मकान में जाना होता है जिसका पता भी हम नहीं जानते । अरे…मैं तो जीवन दर्शन बघारने लगा … लेकिन यह सच है कि कब्र को मकान कहने का ख्याल ऐसे ही किसी दार्शनिक को आया होगा ।
बहरहाल बैतूल के मेरे जन्मगृह से शुरू हुई मेरी यात्रा भंडारा , नागपुर , भोपाल , उज्जैन होते हुए दुर्ग तक आ पहुँची है । इतने शहरों में भी जाने कितने मकानों में रहा हूँ मैं । सोच रहा हूँ उन मकानों के बारे में और उन शहरों के बारे में श्रन्खलाबद्ध रूप से कुछ आलेख लिखे जायें । वैसे इस तरह के मेरे एक- दो आलेख मध्यभारत के अखबार ‘ लोकमत समाचार ‘ में प्रकाशित भी हुए हैं । इस श्रन्खला के लिये बहुत से नाम दिमाग में आ रहे हैं , जैसे......
1 मेरे बसेरे
1 मेरे बसेरे
मेरा जन्मगृह , बैतूल, मध्यप्रदेश |
2 जिन घरों में रहा हूँ मैं
3 मेरे आशियाने
4 जहाँ पे सवेरा हो
5 जहाँ मैंने रातें बिताईं
6 मेरे घरौन्दे
7 सर पर छत
8 मेरी ज़िन्दगी के ठिकाने
आप से मदद की गुजारिश है , इनमें से कोई एक नाम या इनके अलावा भी कोई अच्छा सा नाम मुझे सुझायें । हो सकता है , आगे चलकर यह लेख एक किताब की शक्ल अख़्तियार कर लें , अन्यथा ब्लॉग में तो आप इन्हे पढ़ ही लेंगे और इन मकानों की तस्वीरें भी देख लेंगे । मुझे विश्वास है कि इन घरों, मकानों, हॉस्टल के कमरों के वर्णन के साथ साथ , उस शहर , उस जनपद और उसके पास पड़ोस की संस्कृति , भाषा , जनजीवन के बारे में भी अकादमिक जानकारी से अलग बहुत कुछ आपको जानने को मिलेगा ।
फिलहाल सिर्फ़ एक तस्वीर मध्यप्रदेश के शहर बैतूल के इतवारी बाज़ार स्थित उस घर की जहाँ मेरा जन्म हुआ । इस घर और इस शहर के बारे में पढ़ियेगा अगली पोस्ट में ।
आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी मुझे ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति, घरों की बहुत स्नेहिल स्मृति.. आनंद आ गया..
जवाब देंहटाएं" Mere Gharaunde" ye sheershak achha laga!
जवाब देंहटाएंमैने भी घर अभी तक दो बार बदले है . जिस घर मे भी रहा स्म्रति शेष है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंएक आत्मचेतना कलाकार
हेडिंग पढ़ते ही ध्यान आया की लड़कियों /स्त्रियों के लिए घर बदलना अनिवार्य सा है ...आगे आपकी पोस्ट में पढ़ भी लिया ...
जवाब देंहटाएंजहाँ पर सबेरा हो ...अच्छा लगा
"मेरा घोंसला " भी अच्छा लगता है ...
बहुत प्यारा आलेख. सुंदर प्रस्तुतिकरण.
जवाब देंहटाएंबसेरे
जवाब देंहटाएंकैसा हो सकता है आपकी सोच को नियमित क्रम देने में ये टाईटल.
लोकप्रिय तो उन लेखों को होना ही है, क्योंकि शायद ही किसी भाग्यवान की समूचि जिन्दगी घर बदले बगैर पूरी गुजर पाती हो ।
अच्छी अभिव्यक्ति ,
जवाब देंहटाएंअभी ्तीन नये टाइट्लस दिमाग में आ रहे हैं "मेरी परछाई", "मेरा पासबां", " मेरा माज़ी"।
आज का अन्दाज़ बेहद भाया ऐसा लगा हम भी एक फ़ेरा लगा आये हैं उन घरो का जहाँ जहाँ बसेरा किया था।
जवाब देंहटाएंवैसे तो उपरोक्त नाम काफ़ी अच्छे हैं जो भी रखियेगा अच्छे लगेंगा
फिर भी कुछ नाम देखिये---------
"घर………एक स्वप्नगाह"
"दरो- दीवार आवाज़ देते हैं"
"घर्……कौन सा?"
"कहाँ है मेरा घर?"
सोच लीजिये और भी आयेंगे अभी बताने वाले।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं"छाया" अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंकुछ मेरी तरफ से भी ........अपना आसमां , सपनों का आशियाना , स्वप्निल बसेरा, अपुन का ठिकाना .............सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
deelli bhee aap ka intizaar kar rahi hai .
जवाब देंहटाएंअज्ञेय की कविता बहुत पसंद आई, पहले कभी नहीं पढ़ा था. शीर्षक तो जो सोच सकते थे वो सब आपने दे ही दिया है... कुछ कमरा नंबर XYZ जैसा भी नाम दे दकते हैं एक.
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट का इंतजार रहेगा। आपके सुझाए नाम अच्छे हैं। वैसे 'मेरा सफर' कैसा रहेगा। suffer वाला नहीं सर। अच्छे वाला।
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