tag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post4640531318859071838..comments2023-09-07T14:07:55.634+05:30Comments on पास पड़ोस: हम तो मनोरंजन के लिये सिनेमा देखते हैं यह सब देखना है तो ... पैसे क्यों खर्च करेंशरद कोकासhttp://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-87031663272988618412009-11-18T16:07:46.044+05:302009-11-18T16:07:46.044+05:30अच्छी रिपोर्ट है ....अच्छा लगा पढ़ कर.अच्छी रिपोर्ट है ....अच्छा लगा पढ़ कर.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-40987242124224353822009-11-17T22:54:36.996+05:302009-11-17T22:54:36.996+05:30्फ़िल्म समरोह की एक बहुत बढ़िया रिपोर्ट ।पढ़ते हुय...्फ़िल्म समरोह की एक बहुत बढ़िया रिपोर्ट ।पढ़ते हुये लगा मैं खुद वहां उपस्थित हूं।<br />पूनमपूनम श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09864127183201263925noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-119973408565542932009-11-17T18:21:44.248+05:302009-11-17T18:21:44.248+05:30बहुत बढ़िया रिपोर्ट.ऐसे आयोजन मन को सोचने और महसूस ...बहुत बढ़िया रिपोर्ट.ऐसे आयोजन मन को सोचने और महसूस करने के कुछ और मौक़े दे जाते हैं और इस खाद पानी से मन की उर्वरा शक्ति निश्चित रूप से बढ़ जाती है.धन्यवाद इस अच्छी प्रस्तुति के लिए.Meenu Kharehttps://www.blogger.com/profile/12551759946025269086noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-29891465193630167442009-11-17T16:01:10.642+05:302009-11-17T16:01:10.642+05:30Aapke prashn ka uttar तो bahuton ne de दिया ...हम...Aapke prashn ka uttar तो bahuton ne de दिया ...हम तो sirf tasveerein dekhege ...profile में लगी tasveer और abki tasveer में कोई antar नहीं .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-67164538392444994512009-11-17T15:01:54.655+05:302009-11-17T15:01:54.655+05:30बहुत अच्छी लगी यह फ़िल्म विषयक चर्चा ।बहुत अच्छी लगी यह फ़िल्म विषयक चर्चा ।Chandan Kumar Jhahttps://www.blogger.com/profile/11389708339225697162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-68933255850410221242009-11-17T14:19:23.165+05:302009-11-17T14:19:23.165+05:30Aapne to mere mankee baat kah daalee...sach hai.....Aapne to mere mankee baat kah daalee...sach hai...badee hee nichale darjekee filmon pe kyon paisa barbaad kiya jay?<br />Garam Hava ek behtareen film thee...har drushteese...kamal abhinay, kamal kee katha, tachneek...sab kuchh..<br /><br />http://shamasansmaran.blogspot.com<br /><br />http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.comshamahttps://www.blogger.com/profile/15550777701990954859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-60033775413973422009-11-17T14:05:13.916+05:302009-11-17T14:05:13.916+05:30bahut achha ayojan raha apke yaha...mujhe to lagta...bahut achha ayojan raha apke yaha...mujhe to lagta hai ki is tarak ke ayojan hote rahne chahiye...Vineeta Yashsavihttps://www.blogger.com/profile/10574001200862952259noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-5689163991817477112009-11-17T12:45:37.830+05:302009-11-17T12:45:37.830+05:30हर किसी का अपना अपना दृष्टिकोण होता है ..............हर किसी का अपना अपना दृष्टिकोण होता है ............ बेसिर पैर और जादू टोने वाली पिक्चर्स बनाने वाले भी हैं और ये सोच कर ही बनाते हैं की उनको भी देखने वाले हैं ........... इसलिए मेरा मानना है की हर तरह का दर्शक वर्ग है ... अपनी अपनी सोच और ज़रूरत के अनुसार हर तरह का सिनेमा चलता है ..... ये अच्छी बात है की समाज की ज्वलंत समस्याओं के बारे में भी लोग सोचते हैं और सिनेमा के शशक्त माध्यम का उपयोग करते हैं ..... ऐसे फिल्मोत्सव ज़रूर होने चाहिएं जिससे किसी भी निर्माता को पाठक कमी ना रहे ...... आपकी रिपोर्ट और विषय अच्छा है ...... विचारणीय है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-48572632894471654572009-11-17T11:29:36.669+05:302009-11-17T11:29:36.669+05:30रिपोर्ट पेश करने का तरिका लाजवाब रहा, साथ ही लगाये...रिपोर्ट पेश करने का तरिका लाजवाब रहा, साथ ही लगाये तस्विरों ने चार चाँद लगा दिया । कल आपकी पोस्ट देख नहीं पाया था उसके लिए क्षमा याचना करता हूँ।Mithilesh dubeyhttps://www.blogger.com/profile/14946039933092627903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-70864358861149654802009-11-17T11:19:23.263+05:302009-11-17T11:19:23.263+05:30" bahut hi badhiya post sir aur aapka ye repo..." bahut hi badhiya post sir aur aapka ye report bahut hi pasand aaya hume .aapne is post ke jariye samajik prashan per ujaala daala hai sir "Tulsibhaihttps://www.blogger.com/profile/08821328992864186623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-4916519164708206312009-11-17T11:17:35.285+05:302009-11-17T11:17:35.285+05:30" bahut hi badhiya report sir ..aapne to is r..." bahut hi badhiya report sir ..aapne to is report ke jariye ek SAMAJIK PRASHN PER ujala daal diya ."<br /><br />" aapki is post ko salaam aur aapko badhai "<br /><br />----- eksacchai { AAWAZ }<br /><br />http://eksacchai.blogspot.comTulsibhaihttps://www.blogger.com/profile/08821328992864186623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-67341720036702036392009-11-17T11:13:08.308+05:302009-11-17T11:13:08.308+05:30jai ho !jai ho !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-73328963398094470002009-11-17T09:09:59.760+05:302009-11-17T09:09:59.760+05:30शायद ‘मनोरंजन’ और ‘मन के उद्वेलन’ का फर्क होने के ...शायद ‘मनोरंजन’ और ‘मन के उद्वेलन’ का फर्क होने के कारण ही मुख्य धारा और समानान्तर सिनेमा के दो अलग-अलग दायरे बन गये। बिल्कुल भिन्न पैराडाइम में ये पल बढ़ रहे हैं। अब आवारा, श्री-४२०, मेरा नाम जोकर, लीडर, क्रान्तिवीर जैसी फिल्में नहीं बनती जो दोनो उद्देश्य पूरा करती हों।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-10297828309863965582009-11-17T08:24:35.894+05:302009-11-17T08:24:35.894+05:30यह आप को अजीब लग सकता है कि कोई भी कलात्मक सृजन पह...यह आप को अजीब लग सकता है कि कोई भी कलात्मक सृजन पहले स्वांत:सुखाय होता है फिर कुछ और.. अब यह स्वांत:सुखाय जन के सुख से जुड़ जाय तो कला की सिद्धि मानी जा सकती है। व्यावसायिक रचना कर्म में स्वांत:सुखाय गौड़ होता है और जन रंजन के माध्यम से धनार्जन ही उद्देश्य होता है। <br />फिल्मों के भी दो रास्ते ऐसे ही हैं। जन और व्यक्ति के सुख का संतुलन कला का उद्देश्य होना चाहिए। लेकिन जो होना चाहिए वह होता बहुत कम है - excellence is a rare commodity. <br />_____________________<br />ऐसे आयोजन महत्त्वपूर्ण होते हैं क्यों कि ये संस्कारित करने के साथ साथ आप की उन्नत सोच को आगे बढ़ाते हैं। रिपोर्ट के लिए आभार।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-10312748242614486442009-11-17T08:22:34.841+05:302009-11-17T08:22:34.841+05:30ऐसे आलेख समय की ज़रूरत है शुक्रियाऐसे आलेख समय की ज़रूरत है शुक्रियाबाल भवन जबलपुर https://www.blogger.com/profile/04796771677227862796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-41500864699120249742009-11-17T08:21:17.129+05:302009-11-17T08:21:17.129+05:30शरद जी अब तो फ़िल्म कोई देखता ही नहीं
फ़िल्म बन भी क...शरद जी अब तो फ़िल्म कोई देखता ही नहीं<br />फ़िल्म बन भी कहां रहीं हैम दर्शक घसीटने ब्ल्यू-फ़िल्में<br />{सेक्स-आधारित} फ़िल्म बनतीं है. दर्शक उसे चाव से देख रहे है. <br />साल में एकाध आमीर जैसा कोई आता अच्छी फ़िल्म दे जाता<br />वरना लोग तरस गये सार्थक सिनेमा के लिये. बेशक बस अब <br />खैर छोडिये क्या करेंगे मन के दर्द को जान कर <br />मक्कार निर्माताओं ने आम आदमी को सेक्स हिंसा का कूडादान मान लिया है<br />अब तो सवाल ये उठाइये:-"गिरीश बिल्लोरे फ़िल्म क्यों नहीं देखता..?"बाल भवन जबलपुर https://www.blogger.com/profile/04796771677227862796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-35304900912102834082009-11-17T08:06:42.128+05:302009-11-17T08:06:42.128+05:30अच्छी रिपोर्ट और सामयिक प्रश्न भी....मुझे लगता है ...अच्छी रिपोर्ट और सामयिक प्रश्न भी....मुझे लगता है कि विभिन्न मनः-स्थितियों में एक ही व्यक्ति विभिन्न फ़िल्में पसंद करता है..इसलिए कोई एक क्षण में तो कह सकता है कि वह फ़िल्में मनोरंजन के लिए(क्योंकि फिल्मों का इतिहास मनोरंजन से जुड़ा है) देखता है...परन्तु अच्छी फ़िल्में देखी ही जाती हैं..तभी तो कुछ अच्छी फ़िल्में बाद में असर छोड़ती ही हैं..<br />माजिद मजीदी की लगभग सारी फ़िल्में बेहतरीन होती हैं, 'बायास्किल थीफ' और 'नीयामराजा का विलाप' भी मैंने देखी है और प्रभावित हुआ हूँ....Dr. Shreesh K. Pathakhttps://www.blogger.com/profile/09759596547813012220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-79693952624206177462009-11-17T08:00:58.218+05:302009-11-17T08:00:58.218+05:30समाज की ज़रूरत है ऐसी फिल्में और निरंतर पसंद भी की...समाज की ज़रूरत है ऐसी फिल्में और निरंतर पसंद भी की जाएगी अभी युवा वर्ग मनोरंजन की चाह में रहता है पर अभी भी समाज में एक ऐसा वर्ग है जो इस तरह की फिल्मों को प्रमोट करते है अन्यथा इस तरह आयोजन ना होते ...<br /><br />असर तो करता ही है बस इसे जनसामान्य तक पहुचने की ज़रूरत है १० में से २ पर तो समाज के स्थितियों असर होगा ही..<br /><br />बढ़िया प्रस्तुति शरद जी..धन्यवादविनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-5196468772329148852009-11-17T07:42:10.232+05:302009-11-17T07:42:10.232+05:30बहुत ही बढ़िया रिपोर्ट लिखा है आपने और अत्यन्त सुं...बहुत ही बढ़िया रिपोर्ट लिखा है आपने और अत्यन्त सुंदर ढंग और विस्तारित रूप से प्रस्तुत किया है! एक से बढ़कर एक तस्वीरें हैं जो बहुत ही अच्छा लगा! वैसे देखा जाए तो मनोरंजन के लिए काफी चीज़ें हैं पर कुछ लोगों को देखकर तो विचार नहीं किया जा सकता ! ऐसे बहुत लोग हैं जिनके लिए सिनेमा एकमात्र मनोरंजन हैं और उसी में लोगों को आनंद मिलता है!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-45331322256502403952009-11-17T04:10:11.687+05:302009-11-17T04:10:11.687+05:30बढ़िया रिपोर्ट।
ऐसे अवसर कुछ दिनों के लिए प्राणवा...बढ़िया रिपोर्ट। <br />ऐसे अवसर कुछ दिनों के लिए प्राणवायु दे जाते हैं।अजित वडनेरकरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-88468827157546706372009-11-17T01:06:04.303+05:302009-11-17T01:06:04.303+05:30हां हम मनोरंजन के लिए फिल्म देखते हैं। पर मनोरंजन ...हां हम मनोरंजन के लिए फिल्म देखते हैं। पर मनोरंजन का पैमाना अलग-अलग होता है सब के लिए। आज की फिल्मों में मानवीय संवेदना, लोकाचार. हमारी परंपराओं, संस्कृतियों, ज्वलंत समस्यायों का नहीं, गुल्लक तोड़कर धन्न टनन का प्रतीक ज्यादा है, बीड़ी जलाने से लेकर पप्पू के डांस की विवेचना है। कान-फाड़ू संगीत, नृत्य के नाम पर मस्ती करती भीड़ का पागलपन अगर मनोरंजन है, तो मुझे ऐसा मनोरंजन नहीं चाहिए। प्रायोजकों, विज्ञापनदाताओं को दर्शानेवाले पोस्ट कहां ले जाएगा हमारी संस्कृति पंरपराओं को । जैसे प्रतिरोध के सिनेमा बनाने वाले को उनकी फिल्में मानसिक तुष्टि प्रदान करती हैं, वैसे ही आपके आलेख ने मुझे दिया है।<br /><br /><br /><br />इतनी प्रभावशाली कहानी लिखने के लिए बड़ी प्रतिभा चाहिए और आप में है ।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-86360828087017452912009-11-17T00:36:02.452+05:302009-11-17T00:36:02.452+05:30शरद जी हमे तो कई साल हो गये भारतिया फ़िल्मे देखे, ...शरद जी हमे तो कई साल हो गये भारतिया फ़िल्मे देखे, ऎसी बात नही कि यहां मिलती ना हो, मेरे पास नयी फ़िल्मे करीब ४००, या इस से ज्यादा पडी होगी, जिन्हे ५, या १० मिंत से ज्यादा नही देखा.... ओर इन नयी फ़िल्मो मै सिर्फ़ बकबास के ओर कुछ नही, अच्छी फ़िल्मे बनती है आज भी लेकिन हजारो मै एक जेसे कुछ साल पहले बनी थी रेन कोट, फ़िर डोली सजा के रख्ना, फ़िर राम पाल यादव की कुछ फ़िल्मे.<br />पहले फ़िल्मे बनती थी तो कमपनी को पेसो से ज्यादा नाम की फ़िक्र होती थी, आज ना नाम की फ़िक्र है ना पेसॊ की, अरे काला धन जो सफ़ेद हो जाता है इसी बहाने, जब की नयी फ़िल्म कोप कुछ हजार लोग ही देखते है.<br />सभी चित्र बहुत सुंदर लगे, ओर आप ने लेख भी बहुत सुंदर लिखा.<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-37988374463444054372009-11-17T00:35:08.958+05:302009-11-17T00:35:08.958+05:30कला-माध्यम मनुष्य के व्यक्तित्व-विकास, सामाजिक चेत...कला-माध्यम मनुष्य के व्यक्तित्व-विकास, सामाजिक चेतना के परिष्कार का ही जरिया बन कर उभरते हैं।<br /><br />इनका सिर्फ़ मनोरंजन के उद्देश्य तक ही सिमट कर रह जाना, व्यवस्थागत अपसंस्कृति की वज़ह से है।<br /><br />इसीलिए आप यह वाज़िब प्रश्न उठा रहे हैं।<br /><br />अच्छा लगा।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-72322572610387125582009-11-16T23:58:13.998+05:302009-11-16T23:58:13.998+05:30फिल्म , मनोरंजन और सामाजिक दाय पर आपका संक्षिप्त ...फिल्म , मनोरंजन और सामाजिक दाय पर आपका संक्षिप्त विवेचन अच्छा लगा |<br /> पाण्डेय जी को फोटो में देख कर अच्छा लगा | ज . ने.वि . में सर से क्लास में पढने <br /> का सौभाग्य पा चुका हूँ | ऐसी साहित्यिक हलचल लगातार होती रहे , ,,,,,<br /> धन्यवाद् ............Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2282252565062406987.post-75338809774413146942009-11-16T23:57:41.124+05:302009-11-16T23:57:41.124+05:30मुक्तिबोध के जन्मदिन पर इस शानदार प्रोग्राम के लिए...मुक्तिबोध के जन्मदिन पर इस शानदार प्रोग्राम के लिए आयोजकों का आभार। फिल्मों का चुनाव तो बेहतरीन था। आपके इस ब्लाग का उपशिर्षक "...पड़ोस..." बहुत पसंद आया।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.com